बर्लिन – यदि दुनिया जलवायु की तबाही से बचना चाहती है, तो इसे प्रमाणित कोयला भंडारों के लगभग 90% को जलाने का मोह छोड़ना होगा, और साथ ही प्राकृतिक गैस के एक-तिहाई और तेल के आधे भंडारों को भी छोड़ना होगा। लेकिन इस लक्ष्य को साकार करने के उद्देश्य से बनाई गई नीतियों को लागू करने के बजाय सरकारों ने न केवल जीवाश्म ईंधन उद्योग को सब्सिडी देना, बल्कि नए भंडारों को खोजने के लिए दुर्लभ सार्वजनिक संसाधनों का उपयोग करना भी जारी रखा है। इसे बदलना होगा - और जल्दी ही।
इस परिवर्तन को प्रोत्साहित करने के लिए मदद करने के प्रयास में, हेनरिक बॉल फाउंडेशन और अर्थ इंटरनेशनल के दोस्तों ने अभी हाल ही में जारी कोयला एटलस में कोयला उद्योग के बारे में महत्वपूर्ण डेटा एकत्रित किया है। ये आंकड़े आश्चर्यजनक हैं।
इस सार्वजनिक निवेश से कोयला क्षेत्र के लिए पहले से ही किए जा रहे पर्याप्त वाणिज्यिक वित्तपोषण में और अधिक वृद्धि हो गई। 2013 में, 92 प्रमुख बैंकों ने कम-से-कम €66 बिलियन ($71 बिलियन) की राशि प्रदान की – यह 2005 की तुलना में चौगुनी से अधिक थी। यह सब एक ऐसे उद्योग को मज़बूत करने के लिए किया गया जो वैश्विक उत्सर्जनों में भारी मात्रा में योगदान करता है - और वह इसे जारी रखने के लिए दृढ़ संकल्प दिखाई देता है।
1988 के बाद से केवल 35 कोयला उत्पादकों, निजी और राज्य के स्वामित्व वाले, दोनों ही ने कुल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जनों में एक-तिहाई का योगदान किया है। उनके उत्पाद जो क्षति कर रहे हैं वह किसी से छिपा नहीं है। और फिर भी कोयला और अन्य जीवाश्म ईंधन कंपनियों ने अपने व्यापार मॉडलों को बदलने से मना कर दिया है। इसके बजाय, उन्होंने जलवायु परिवर्तन को नकारनेवालों का वित्तपोषण करने और नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्यों और फ़ीड-इन टैरिफ जैसे सफल साधनों के खिलाफ पैरवी करने सहित, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन को कम करने के प्रयासों को रोकने के लिए सक्रिय रूप से काम किया है।
इस बीच, कोयला उद्योग का तर्क है कि यह "ऊर्जा की गरीबी” - अर्थात विद्युत के आधुनिक गैर-प्रदूषणकारी रूपों, मुख्य रूप से बिजली तक पहुँच की कमी - से निपटने के लिए अपरिहार्य भूमिका का निर्वाह करता है। यह सच है कि ऊर्जा की गरीबी एक बड़ी समस्या है, जो दुनिया भर में लगभग 1.2 बिलियन लोगों को प्रभावित करती है। किसानों को अपनी फसलों की सिंचाई के लिए पंप किए गए पानी पर निर्भर रहना ज़रूरी है, उनके लिए इसका मतलब कम कार्यक्षमता और कम उत्पादकता है। परिवारों के लिए खाना पकाने के लिए लकड़ी, उपले और मिट्टी का तेल जलाना ज़रूरी है, उनके लिए इसका मतलब घर के अंदर वायु प्रदूषण का होना है जिससे सांस की बीमारी हो सकती है। स्कूली बच्चों के लिए, अंधेरा होने के बाद खराब रोशनी होने का मतलब सीखने के अवसरों को खोना है।
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लेकिन कोयला समाधान नहीं है। कोयला उत्पादन और दहन के स्वास्थ्य पर पड़नेवाले प्रभाव चौंकानेवाले हैं। 2013 में, कोयला श्रमिकों में क्लोमगोलाणुरुग्णता ("काले फेफड़ों के रोग") के कारण विश्व स्तर पर 25,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई। यूरोपीय संघ में, कोयला दहन के कारण प्रतिवर्ष 18,200 समयपूर्व मौतें और क्रोनिक ब्रोंकाइटिस के 8,500 नए मामले होते हैं। चीन में, कोयला दहन के कारण लगभग 250,000 लोगों की समयपूर्व मृत्यु हो जाती है।
शारीरिक दुर्घटनाओं के कारण काम के दिनों की हानि से लेकर स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली पर पड़नेवाले दबाव के रूप में भारी आर्थिक लागतें भी वहन करनी पड़ती हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण भी भारी लागतें आएँगी, भले ही शमन और अनुकूलन के मजबूत उपाय भी क्यों न किए जाएँ। 48 सबसे कम विकसित देशों के लिए, कोयले की लागतें शीघ्र ही अनुमानित तौर पर $50 बिलियन प्रतिवर्ष हो जाएँगी।
सब्सिडियाँ प्राप्त करने के बजाय, जीवाश्म-ईंधन उद्योग को तो जलवायु परिवर्तन के लिए भुगतान करना चाहिए। सच तो यह है कि अभी पिछले साल, दो शीर्ष जीवाश्म ईंधन कंपनियों - शेवरॉन और एक्सॉनमोबिल कंपनियों - ने मिलकर $50 बिलियन से अधिक का लाभ कमाया।
यदि दुनिया को कार्बन डाइऑक्साइड कैप्चर और स्टोरेज या भू इंजीनियरिंग जैसी खतरनाक और जोखिमपूर्ण प्रौद्योगिकियाँ अपनाने के लिए मजबूर किए बिना, वैश्विक सतह के तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस अधिक तक सीमित रखने का कोई मौका हासिल करना है, तो इसकी ऊर्जा प्रणाली को बदलाना होगा।
और सबसे पहले, दुनिया के नेताओं को जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध रूप से समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए, जिसमें 90% प्रमाणित कोयला भंडारों, एक-तिहाई तेल भंडारों, और आधे गैस भंडारों को ज़मीन में रहने देने का लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए। उन्हें अगले कुछ वर्षों के भीतर जितनी जल्दी हो सके कोयले के लिए सार्वजनिक सब्सिडी भी समाप्त कर देनी चाहिए, और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि गरीब और कमजोर समुदायों पर ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि का बोझ नहीं पड़ता है।
इसके अलावा, दुनिया भर की सरकारों को कोयला और अन्य जीवाश्म-ईंधन उत्पादकों के उत्पादों ने जो क्षति पहुँचाई है, उसके लिए जीवाश्म ईंधन उत्कर्षण पर लेवी लगाने सहित, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के तहत नुकसान और क्षति पर वारसॉ तंत्र को निधि प्रदान करने के लिए उन्हें जवाबदेह ठहराना चाहिए। मौजूदा अंतरराष्ट्रीय कानून - विशेष रूप से, "प्रदूषणकर्ता भुगतान करे" का सिद्धांत, "कोई नुकसान न करें” का नियम, और क्षतिपूर्ति का अधिकार - ऐसी प्रणाली का समर्थन करता है।
अंत में, ऊर्जा गरीबी से निपटने के लिए दुनिया भर के नेताओं को चाहिए कि वे विकासशील देशों में नवीकरणीय ऊर्जा के मिनी ग्रिडों के लिए विश्व स्तर पर वित्तपोषित फ़ीड-इन टैरिफ के माध्यम से किए जानेवाले वित्तपोषण सहित, विकेन्द्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के वित्तपोषण में वृद्धि करें।
जीवाश्म ईंधन उद्योग को अपने स्वयं के हितों की रक्षा करने में सफलता हमारे भूमंडल और उसके लोगों के स्वास्थ्य की कीमत पर मिली है। अब हमारी विकृत वैश्विक ऊर्जा प्रणाली में सुधार करने का समय आ गया है - इसकी शुरूआत यह संकल्प करके की जा सकती है कि कोयला और अन्य जीवाश्म ईंधनों को वहीं छोड़ दें जहाँ पर वे हैं।
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For America to address the glaring flaws in its constitutional order, it will need to move to a system where judicial decisions are made not by “Democratic judges” or “Republican judges,” but just by judges. No other liberal democracy allows for such a corrosively politicized appointment process.
sees the country’s politicized Supreme Court as the biggest obstacle to addressing many other problems.
Though antitrust enforcement has been gaining momentum on both sides of the Atlantic, a handful of private actors still wield extraordinary market power – and thus power over ordinary people’s lives. With some calling for more radical action, and others warning that reining in firms’ market power would be unhelpful and even harmful, we asked PS commentators what needs to be done.
बर्लिन – यदि दुनिया जलवायु की तबाही से बचना चाहती है, तो इसे प्रमाणित कोयला भंडारों के लगभग 90% को जलाने का मोह छोड़ना होगा, और साथ ही प्राकृतिक गैस के एक-तिहाई और तेल के आधे भंडारों को भी छोड़ना होगा। लेकिन इस लक्ष्य को साकार करने के उद्देश्य से बनाई गई नीतियों को लागू करने के बजाय सरकारों ने न केवल जीवाश्म ईंधन उद्योग को सब्सिडी देना, बल्कि नए भंडारों को खोजने के लिए दुर्लभ सार्वजनिक संसाधनों का उपयोग करना भी जारी रखा है। इसे बदलना होगा - और जल्दी ही।
इस परिवर्तन को प्रोत्साहित करने के लिए मदद करने के प्रयास में, हेनरिक बॉल फाउंडेशन और अर्थ इंटरनेशनल के दोस्तों ने अभी हाल ही में जारी कोयला एटलस में कोयला उद्योग के बारे में महत्वपूर्ण डेटा एकत्रित किया है। ये आंकड़े आश्चर्यजनक हैं।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, कोयले के लिए कर-पश्चात सब्सिडियों की राशि (पर्यावरणीय क्षति सहित) इस वर्ष वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 3.9% तक पहुँच गई। अनुमान है कि जी-20 की सरकारें नए जीवाश्म ईंधनों के लिए अन्वेषणों की सब्सिडियों पर प्रति वर्ष $88 बिलियन खर्च करेंगी। और प्राकृतिक संसाधन सुरक्षा परिषद, ऑयल चेंज इंटरनेशनल, और वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर की एक हाल ही की रिपोर्ट से पता चला है कि 2007 से 2014 तक, सरकारों ने कोयला परियोजनाओं में $73 बिलियन – या प्रतिवर्ष $9 बिलियन से अधिक का सार्वजनिक धन लगाया। इनमें जापान ($20 बिलियन), चीन (लगभग $15 बिलियन), दक्षिण कोरिया ($7 बिलियन), और जर्मनी ($6.8 बिलियन) अग्रणी थे।
इस सार्वजनिक निवेश से कोयला क्षेत्र के लिए पहले से ही किए जा रहे पर्याप्त वाणिज्यिक वित्तपोषण में और अधिक वृद्धि हो गई। 2013 में, 92 प्रमुख बैंकों ने कम-से-कम €66 बिलियन ($71 बिलियन) की राशि प्रदान की – यह 2005 की तुलना में चौगुनी से अधिक थी। यह सब एक ऐसे उद्योग को मज़बूत करने के लिए किया गया जो वैश्विक उत्सर्जनों में भारी मात्रा में योगदान करता है - और वह इसे जारी रखने के लिए दृढ़ संकल्प दिखाई देता है।
1988 के बाद से केवल 35 कोयला उत्पादकों, निजी और राज्य के स्वामित्व वाले, दोनों ही ने कुल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जनों में एक-तिहाई का योगदान किया है। उनके उत्पाद जो क्षति कर रहे हैं वह किसी से छिपा नहीं है। और फिर भी कोयला और अन्य जीवाश्म ईंधन कंपनियों ने अपने व्यापार मॉडलों को बदलने से मना कर दिया है। इसके बजाय, उन्होंने जलवायु परिवर्तन को नकारनेवालों का वित्तपोषण करने और नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्यों और फ़ीड-इन टैरिफ जैसे सफल साधनों के खिलाफ पैरवी करने सहित, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन को कम करने के प्रयासों को रोकने के लिए सक्रिय रूप से काम किया है।
इस बीच, कोयला उद्योग का तर्क है कि यह "ऊर्जा की गरीबी” - अर्थात विद्युत के आधुनिक गैर-प्रदूषणकारी रूपों, मुख्य रूप से बिजली तक पहुँच की कमी - से निपटने के लिए अपरिहार्य भूमिका का निर्वाह करता है। यह सच है कि ऊर्जा की गरीबी एक बड़ी समस्या है, जो दुनिया भर में लगभग 1.2 बिलियन लोगों को प्रभावित करती है। किसानों को अपनी फसलों की सिंचाई के लिए पंप किए गए पानी पर निर्भर रहना ज़रूरी है, उनके लिए इसका मतलब कम कार्यक्षमता और कम उत्पादकता है। परिवारों के लिए खाना पकाने के लिए लकड़ी, उपले और मिट्टी का तेल जलाना ज़रूरी है, उनके लिए इसका मतलब घर के अंदर वायु प्रदूषण का होना है जिससे सांस की बीमारी हो सकती है। स्कूली बच्चों के लिए, अंधेरा होने के बाद खराब रोशनी होने का मतलब सीखने के अवसरों को खोना है।
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शारीरिक दुर्घटनाओं के कारण काम के दिनों की हानि से लेकर स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली पर पड़नेवाले दबाव के रूप में भारी आर्थिक लागतें भी वहन करनी पड़ती हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण भी भारी लागतें आएँगी, भले ही शमन और अनुकूलन के मजबूत उपाय भी क्यों न किए जाएँ। 48 सबसे कम विकसित देशों के लिए, कोयले की लागतें शीघ्र ही अनुमानित तौर पर $50 बिलियन प्रतिवर्ष हो जाएँगी।
सब्सिडियाँ प्राप्त करने के बजाय, जीवाश्म-ईंधन उद्योग को तो जलवायु परिवर्तन के लिए भुगतान करना चाहिए। सच तो यह है कि अभी पिछले साल, दो शीर्ष जीवाश्म ईंधन कंपनियों - शेवरॉन और एक्सॉनमोबिल कंपनियों - ने मिलकर $50 बिलियन से अधिक का लाभ कमाया।
यदि दुनिया को कार्बन डाइऑक्साइड कैप्चर और स्टोरेज या भू इंजीनियरिंग जैसी खतरनाक और जोखिमपूर्ण प्रौद्योगिकियाँ अपनाने के लिए मजबूर किए बिना, वैश्विक सतह के तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस अधिक तक सीमित रखने का कोई मौका हासिल करना है, तो इसकी ऊर्जा प्रणाली को बदलाना होगा।
और सबसे पहले, दुनिया के नेताओं को जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध रूप से समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए, जिसमें 90% प्रमाणित कोयला भंडारों, एक-तिहाई तेल भंडारों, और आधे गैस भंडारों को ज़मीन में रहने देने का लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए। उन्हें अगले कुछ वर्षों के भीतर जितनी जल्दी हो सके कोयले के लिए सार्वजनिक सब्सिडी भी समाप्त कर देनी चाहिए, और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि गरीब और कमजोर समुदायों पर ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि का बोझ नहीं पड़ता है।
इसके अलावा, दुनिया भर की सरकारों को कोयला और अन्य जीवाश्म-ईंधन उत्पादकों के उत्पादों ने जो क्षति पहुँचाई है, उसके लिए जीवाश्म ईंधन उत्कर्षण पर लेवी लगाने सहित, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के तहत नुकसान और क्षति पर वारसॉ तंत्र को निधि प्रदान करने के लिए उन्हें जवाबदेह ठहराना चाहिए। मौजूदा अंतरराष्ट्रीय कानून - विशेष रूप से, "प्रदूषणकर्ता भुगतान करे" का सिद्धांत, "कोई नुकसान न करें” का नियम, और क्षतिपूर्ति का अधिकार - ऐसी प्रणाली का समर्थन करता है।
अंत में, ऊर्जा गरीबी से निपटने के लिए दुनिया भर के नेताओं को चाहिए कि वे विकासशील देशों में नवीकरणीय ऊर्जा के मिनी ग्रिडों के लिए विश्व स्तर पर वित्तपोषित फ़ीड-इन टैरिफ के माध्यम से किए जानेवाले वित्तपोषण सहित, विकेन्द्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के वित्तपोषण में वृद्धि करें।
जीवाश्म ईंधन उद्योग को अपने स्वयं के हितों की रक्षा करने में सफलता हमारे भूमंडल और उसके लोगों के स्वास्थ्य की कीमत पर मिली है। अब हमारी विकृत वैश्विक ऊर्जा प्रणाली में सुधार करने का समय आ गया है - इसकी शुरूआत यह संकल्प करके की जा सकती है कि कोयला और अन्य जीवाश्म ईंधनों को वहीं छोड़ दें जहाँ पर वे हैं।