परमाणु संरक्षा से परमाणु सुरक्षा तक

वाशिंगटन, डीसी/मास्को– चार साल पहले, जापान के तट पर विनाशकारी सूनामी ने कहर बरपा दिया था। पचास फुट ऊँची लहरों ने फुकुशिमा डायची परमाणु विद्युत संयंत्र के तटबंध को तोड़ दिया था जिससे इसकी आपातकालीन विद्युत आपूर्ति बंद हो गई थी और इसकी शीतन प्रणालियाँ अक्षम हो गई थीं।

1986 में चेर्नोबिल विद्युत संयंत्र के नष्ट होने के बाद यह परमाणु दुर्घटना सबसे भयंकर थी। अन्वेषक इस निष्कर्ष पर पहुँचे थे कि इसके मूल कारणों में से एक कारण असावधानी था: सुविधा के प्रभारियों को यह लगा था कि उनकी संरक्षा प्रणालियाँ मज़बूत थीं, और उसमें कोई कारगर निगरानी प्रणाली मौजूद नहीं थी।

जापान में इस आपदा के फलस्वरूप परमाणु संरक्षा के क्षेत्र में सुधारों में तेज़ी आई है। लेकिन जब मुद्दा परमाणु सुरक्षा का होता है तो असावधानी मुख्य समस्या होती है। हमें इस बारे में कुछ करने के लिए विपदा की विनाशलीला की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए।

आज, 1.5 मिलियन किलोग्राम से भी अधिक संवर्धित यूरेनियम और प्लूटोनियम – जो परमाणु हथियारों में प्रयुक्त मुख्य सामग्री होती है – 25 देशों में मौजूद सैकड़ों सुविधाओं में छितरे पड़े हैं। इनमें से कुछ बहुत कम सुरक्षित हैं। फिर भी, लाखों लोगों को मौत के घाट उतारने और अरबों डॉलर की क्षति पहुँचाने के लिए बनाए जानेवाले किसी डिवाइस के लिए चीनी के एक छोटे से बैग में समा जानेवाली परमाणु सामग्री ही काफी होती है।

परमाणु सुविधाओं में सुरक्षा को बेहतर बनाने के लिए हाल ही के वर्षों में बहुत कुछ किया गया है, लेकिन सरकारों को परमाणु आतंकवाद के विनाशकारी जोखिम से अपने नागरिकों की रक्षा करने के लिए और अधिक उपाय करने चाहिए। फुकुशिमा संकट से सीखे गए सबक सुधार के लिए एक उपयोगी मार्गदर्शिका के रूप में काम आ सकते हैं।

शुरुआत करनेवालों के लिए, सरकारों और उद्योग को परमाणु सुरक्षा को निरंतर सुधार की प्रक्रिया के रूप में मानना चाहिए और नए विकसित हो रहे ख़तरों और चुनौतियों का सामना करने के लिए काम करना चाहिए। 20 साल पहले सुरक्षित मानी जानेवाली सुविधा अब किसी ऐसे साइबर हमले की चपेट में आ सकती है जो इसकी सुरक्षा व्यवस्थाओं को बाईपास कर देता है या इसकी परमाणु सामग्री का ट्रैक रखने के प्रयासों को गड़बड़ा देता है।

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सुसंगठित और भली-भाँति वित्तपोषित इस्लामी राज्य जैसे गैर-राज्य समूह, परमाणु सामग्रियों की चोरी करने के लिए नई रणनीतियाँ, प्रौद्योगिकियाँ, और क्षमताएँ इस्तेमाल कर सकते हैं। इसलिए सरकारों को नई विकसित हो रही प्रौद्योगिकियों और ख़तरों का लगातार मूल्यांकन करते रहना चाहिए ताकि परमाणु सामग्रियों के संरक्षण के लिए बनाई गई सुरक्षा व्यवस्थाएँ उन्हें चुराने की कोशिश करनेवालों की क्षमताओं से अधिक बनी रहें।

दूसरे, सरकारों और उद्योग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि संरक्षा संस्कृति की तरह सुरक्षा संस्कृति भी हर परमाणु सुविधा के प्रचालनों का एक अभिन्न अंग बन जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका की सामरिक कमान के पूर्व कमांडर-इन-चीफ जनरल यूजीन हैबिजर, जो अमेरिका के ऊर्जा विभाग के “सुरक्षा प्रमुख” थे, ने एक बार कहा था: “अच्छी सुरक्षा में 20% उपस्कर और 80% लोगों का योगदान होता है।”

सुरक्षा की एक मजबूत संस्कृति का पोषण करने के लिए सरकारों और उद्योग को मिलकर काम करना चाहिए। परमाणु सुविधा में प्रत्येक कर्मचारी - गार्डों से लेकर वरिष्ठ कर्मचारियों और वैज्ञानिकों तक - को परमाणु सामग्रियों की सुरक्षा को अपने कार्यों के एक अनिवार्य अंग के रूप में देखना चाहिए।

तीसरे, सरकारों को परमाणु सुविधाओं में सुरक्षा व्यवस्थाओं की नियमित रूप से समीक्षा करनी चाहिए। परमाणु प्रचालकों के लिए इतना कह देना भर काफी नहीं है कि उनकी सुविधाओं में सुरक्षा की स्थिति "पर्याप्त है।" प्रभावी निरीक्षण असावधानी को पूरी तरह से दूर कर सकता है।

फुकुशिमा ने इस बात की आवश्यकता को उजागर किया है कि नियामकों द्वारा नियमित रूप से संकट संबंधी परीक्षण किए जाने चाहिए, जिनमें परमाणु सुविधाओं की क्षमता का इस दृष्टि से मूल्यांकन किया जाना चाहिए कि वे अपनी सुरक्षा को प्रभावित करने वाली विभिन्न आकस्मिकताओं का सामना कर सकते हैं। नियामकों को विशेष रूप से इसी तरह के मूल्यांकन, सुविधाओं की सुरक्षा संबंधी ख़तरों का सामना करने की क्षमता का आकलन करने के उद्देश्य से भी करने चाहिए, जिसमें अंदर के जानकार लोगों द्वारा चोरी किया जाना शामिल है।

अंत में, दुनिया के नेताओं को चाहिए कि वे परमाणु सुरक्षा पर गुप्त प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय सहयोग करने के प्रयास करें। जैसा कि चेर्नोबिल और फुकुशिमा की घटनाओं ने दर्शाया था, किसी एक देश में परमाणु सुरक्षा कमजोरियों के बाकी दुनिया के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं। परमाणु सुरक्षा जोखिमों के बारे में भी यही बात कही जा सकती है।

यह हमारी साझा राजनीतिक - और नैतिक - जिम्मेदारी है कि हम सुनिश्चित करें कि आतंकवादियों के हाथ दुनिया की सबसे ख़तरनाक सामग्रियों तक कभी भी न पहुँच पाएँ। देशों को नुन-लुगर कोआपरेटिव थ्रेट रिडक्शन कार्यक्रम के उदाहरण से सबक सीखना चाहिए, जो परमाणु सुरक्षा पर संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और पूर्व सोवियत राज्यों के बीच सहयोग का एक सफल कार्यक्रम है। परमाणु सामग्रियों वाले देशों को इस बारे में जानकारी का आदान-प्रदान करना चाहिए कि सुरक्षा को किस तरह मज़बूत किया जा सकता है, एक जैसी परमाणु सुरक्षा चुनौतियों के बारे में खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान किस तरह किया जा सकता है, और समकक्षों की समीक्षाएँ आयोजित करने की संभावना का पता लगाया जाना चाहिए।

हमारे मित्र और सहयोगी सैम नुन, जो परमाणु ख़तरा पहल के सह-अध्यक्ष हैं, अक्सर चेताते रहते हैं कि हम सहयोग और विनाश के बीच एक दौड़ में हैं। यह महत्वपूर्ण है कि हम फुकुशिमा से सबक सीखें और उन्हें परमाणु आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए अपनी रणनीति में शामिल करें। यह एक ऐसी दौड़ है जिसमें हम पिछड़ना बर्दाश्त नहीं कर सकते।

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