Portrait of a young girl.

अपने बच्चों के लिए कुछ भी नहीं छोड़ना

स्टॉकहोम - हमारी पीढ़ी के लिए यह एक अनूठा अवसर है। यदि हम अपना ध्यान इस पर केंद्रित करते हैं, तो मानव इतिहास में हम ऐसे पहले लोग होंगे जो अपने बच्चों के लिए कुछ भी नहीं छोड़ेंगे: कोई ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन नहीं, कोई गरीबी नहीं, और कोई जैव विविधता की हानि नहीं।

दुनिया भर के नेता सतत विकास के लक्ष्यों (एसडीजी) को अपनाने के लिए जब 25 सितंबर को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र में मिलेंगे तो वे यही तय करेंगे। इसके 17 लक्ष्य गरीबी समाप्त करने और स्वास्थ्य में सुधार करने से लेकर इस ग्रह के जैव मंडल की रक्षा करने और सभी के लिए ऊर्जा प्रदान करने से संबंधित हैं। ये संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में सबसे बड़े शिखर सम्मेलन 2012 में “रियो+20” सम्मेलन से उभरे हैं, जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किया गया अब तक का सबसे बड़ा परामर्श हुआ है।

अपने पूर्ववर्ती एमडीजी के विपरीत, जिनमें लगभग विशेष रूप से विकासशील देशों पर ही ध्यान केंद्रित किया गया था, नए वैश्विक लक्ष्य सार्वभौमिक हैं और वे सभी देशों पर समान रूप से लागू होते हैं। उन्हें स्वीकार किया जाना इस बात की व्यापक स्वीकृति की ओर संकेत करता है कि पृथ्वी के प्राकृतिक चक्रों की दीर्घकालिक स्थिरता के लिए सभी देशों को मिलकर जिम्मेदारी लेनी चाहिए जिन पर धरती की हमारा भरण-पोषण करने की क्षमता निर्भर करती है।

वास्तव में, एसडीजी ऐसे पहले विकास ढांचे के रूप में हैं जिसमें धरती के साथ हमारे संबंधों में एक बुनियादी बदलाव को माना गया है। पृथ्वी के 4.5 बिलियन वर्ष के इतिहास में पहली बार इसकी प्रणालियों को निर्धारित करनेवाले प्रमुख कारक, अब इस ग्रह से सूर्य की दूरी या इसके ज्वालामुखी विस्फोटों की शक्ति या आवृत्ति नहीं रह गए हैं; उनका स्थान अर्थशास्त्र, राजनीति और प्रौद्योगिकी ने ले लिया है।

पिछले 12,000 वर्षों के दौरान अधिकतर समय तक पृथ्वी की जलवायु अपेक्षाकृत स्थिर थी और जैव-मंडल लचीला और स्वस्थ था। भूवैज्ञानिक इस अवधि को नवयुग कहते हैं। अभी हाल ही में, हम उस युग में पहुँच गए हैं जिसे कई लोग अधुनातन युग कहते हैं, यह एक ऐसा युग है जिसमें मानव-प्रेरित पर्यावरण परिवर्तन का बहुत ही कम पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।

इस बुनियादी बदलाव के फलस्वरूप एक नया आर्थिक मॉडल आवश्यक हो गया है। अब हम यह नहीं मान सकते हैं कि संसाधन अनंत हैं, जैसा कि प्रचलित आर्थिक विचारधारा मानती है। कभी हम एक बड़े ग्रह पर एक छोटा सा समाज थे। आज, हम एक छोटे से ग्रह पर एक बड़ा समाज हैं।

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और इसके बावजूद, एसडीजी किसी भी तरह से काल्पनिक नहीं हैं, और इन्हें 2030 तक प्राप्त किया जा सकता है। डेनमार्क, फिनलैंड, नार्वे और स्वीडन सहित कुछ देश, इनमें से बहुत-से लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हैं, और दुनिया भर में अन्यत्र भी बहुत अधिक प्रगति हो रही है। पिछले कुछ दशकों में, गरीबी आधी हो चुकी है। सुर्खियों में होने के बावजूद हिंसक संघर्ष कम हो रहा है। रोगों का उन्मूलन किया जा रहा है। विश्व की जनसंख्या में स्थिरता आनी शुरू हो गई है। ओज़ोन परत में सुधार के लक्षण दिखाई देने लगे हैं। और डिजिटल क्रांति समूचे उद्योगों को ऐसे तरीकों से अस्त-व्यस्त कर रही है जिनसे इस ग्रह को लाभ हो सकता है।

चरम गरीबी का उन्मूलन हमारी पहुँच के भीतर हो गया है। आज लगभग 800 मिलियन लोग $1.25 प्रतिदिन से कम पर रह रहे हैं। हाल ही की विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, उनमें से लगभग 30% लोग भारत में रहते हैं, जिसमें सही प्रोत्साहन मिलने पर औद्योगीकृत होने की विशाल क्षमता मौजूद है। नाइजीरिया (जहाँ सबसे गरीब 10% लोग रहते हैं), चीन (जहाँ 8% गरीब रहते हैं) और बांग्लादेश (जहाँ 6% गरीब हैं) सहित, अन्य देशों में भी गरीबी घट रही है।

संदेह का मुख्य स्रोत अमीर देशों की इस प्रतिबद्धता से संबंधित है कि वे ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जनों में कटौती करने में विकासशील देशों की मदद तब करेंगे जब वे गरीबी को दूर कर लेंगे। उचित सहायता के बिना, गरीब देशों के सामने कम-से-कम एक और पीढ़ी के लिए कोयला और तेल पर निर्भरता में फंस जाने का जोखिम है जिसके फलस्वरूप पूरे ग्रह पर नियंत्रण-रहित जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा सकता है।

दुनिया के नेताओं के लिए यह समझ लेना आवश्यक है कि वैश्विक ऊर्जा प्रणाली को बदलने की लागत इस ग्रह के शेष बचे जीवाश्म ईंधनों को जलाने के परिणामों को भुगतने की लागत की तुलना में बहुत ही कम होगी। इस महीने प्रकाशित अनुसंधान में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि शेष बचे सभी हाइड्रोकार्बनों का उपयोग करने का परिणाम यह होगा कि अंटार्कटिक की बर्फ की संपूर्ण परत पिघल जाएगी, जिससे समुद्र के जल स्तर संभावित रूप से 58 मीटर तक बढ़ जाएँगे। और समुद्र के उच्च जल स्तर तो केवल एक संभावित खतरा हैं। उदाहरण के लिए, जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप सूखा पड़ने और फसलों के नष्ट होने से, हिंसक संघर्षों के भड़कने की संभावना हो सकती है।

सौभाग्य से, इस बात का प्रचुर मात्रा में सबूत है कि देश और उद्योग जलवायु परिवर्तन में योगदान किए बिना फल-फूल सकते हैं। यह संभावना है कि 2030 तक कई देश जीवाश्म ईंधन से स्वयं को मुक्त कर लेंगे जिनमें संभवतः स्वीडन, फ्रांस, और जर्मनी सबसे आगे होंगे। इन देशों में कम वायु प्रदूषण, बेहतर स्वास्थ्य और अच्छा जीवन, और फलती-फूलती अर्थव्यवस्थाएँ होंगी।

वे जैव-मंडल पर भी कम दबाव डालेंगे। कुछ अनुमानों के अनुसार, इस धरती पर जीवन पहले कभी इतना विविधतापूर्ण नहीं रहा है। जैव विविधता का महत्व इस रूप में है कि यह हमारे पारिस्थितिक तंत्रों को और अधिक लचीला बनाती है, जो स्थिर समाजों के लिए एक पूर्व शर्त है, इसका अकारण विनाश करना मानो अपनी जीवनरक्षक नौका में आग लगाने के समान है। भूमि का प्रभावी ढंग से उपयोग करने और वनों की कटाई को रोकने सहित, गरीबी को समाप्त करने और उत्सर्जनों को कम करने से, इस प्रवृत्ति को रोकने और क्षति को कम करने में बहुत अधिक मदद मिलेगी।

आइकिया और यूनिलीवर जैसी कंपनियाँ इस ग्रह की जलवायु, इसके संसाधनों, और पारिस्थितिकी तंत्रों की जिम्मेदारी लेने के लिए वास्तविक प्रयास करके अग्रणी बनी हुई हैं। इसका एक कारण यह है कि उपभोक्ता जागरूकता के बढ़ने से पारिस्थितिकी तंत्र में क्षरण, कारोबार के लिए हानिकारक होता है। साथ ही, सूचना प्रौद्योगिकी से लेकर कृषि तक सभी उद्योग, प्रकृति द्वारा उपलब्ध की गई सेवाओं पर निर्भर करते हैं। वनों, नदियों, घास के मैदानों, और प्रवाल भित्तियों का टिकाऊ तरीके से प्रबंध करने पर वे अधिक लचीले हो जाते हैं और उनकी ग्रीनहाउस गैसों को अवशोषित करने की क्षमता बढ़ जाती है, जो कारोबार के लिए अच्छा होता है।

हम ऐसी पहली पीढ़ी हैं जो इस बारे में एक जानकारी-युक्त पसंद का चयन कर सकती है कि हमारी धरती किस दिशा में जाएगी। हम अपने वंशजों के लिए गरीबी रहित, जीवाश्म ईंधन के उपयोग रहित, और जैव-विविधता हानि रहित संसाधन छोड़ सकते हैं, या हम उनके लिए धरती को लौटाया जाने वाला एक ऐसा कर्ज़ छोड़ सकते हैं जिसे चुकाने में उनका मटियामेट हो सकता है।

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