हांगकांग - हिमालय की पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिए जब ख़तरों की पहचान की जाती है, तो चीन सबसे अलग दिखाई देता है। वर्षों से, पीपुल्स रिपब्लिक संसाधन संपन्न तिब्बती पठार पर नदियों को बेहताशा नियंत्रित करने और खनिज संपदा का निरंकुश दोहन करने में लगा हुआ है। अब वह दुनिया सबसे बड़े और बहुत तेजी से पनप रहे इस क्षेत्र में ग्लेशियर के पानी को अनापशनाप निकालने वाले बोतलबंद पानी के अपने उद्योग को प्रोत्साहित करने के प्रयासों में भारी बढ़ोतरी कर रहा है।
ग्रेट हिमालय में 18,000 की ऊंचाई वाले ग्लेशियरों में से लगभग तीन-चौथाई ग्लेशियर तिब्बत में हैं, जबकि बाकी भारत और इसके आस-पड़ोस में हैं। असंख्य पर्वतीय झरनों और झीलों के साथ तिब्बती ग्लेशियर, मेकांग और चांग से लेकर सिंधु और द यैलो सहित, एशिया की बड़ी नदियों को पानी की आपूर्ति करते हैं। वास्तव में, तिब्बती पठार एशिया की लगभग सभी प्रमुख नदी प्रणालियों का उद्गम स्थल हैं।
तिब्बत को अपने अधिकार में करके, चीन ने एक तरह से एशिया के पानी का नक्शा ही बदल दिया है। और इसका इसे और अधिक बदलने का इरादा है, क्योंकि यह सीमा-पार नदी तटों के प्रवाहों की दिशा को बदल देनेवाले बाँधों का निर्माण कर रहा है जिनके फलस्वरूप उसे नदी के मुहाने वाले देशों पर महत्वपूर्ण लाभ की स्थिति प्राप्त हो रही है।
लेकिन चीन विशुद्ध रूप से सामरिक हितों से प्रेरित नहीं है। चूँकि इसकी नदियों, झीलों, और जलाशयों में मौजूद अधिकतर पानी मानव के उपयोग लिए योग्य नहीं है, स्वच्छ पानी चीन के लिए नए तेल के समान हो गया है, यह एक ऐसा अनमोल और महत्वपूर्ण संसाधन बन गया है जिसके अत्यधिक दोहन से प्राकृतिक वातावरण के नष्ट होने का जोखिम पैदा हो गया है। नल के पानी के सुरक्षित होने के बारे में संदेह रखनेवाली जनता को संतुष्ट कर सकनेवाले प्रमुख पेय जल को हिमालय के ग्लेशियरों से प्राप्त करने के लिए अपनी कंपनियों को प्रोत्साहित करके, चीन एशिया भर में पर्यावरण के ख़तरों को बढ़ा रहा है।
हालांकि चीन में वर्तमान में बेचा जा रहा अधिकतर बोतलबंद पानी वर्तमान में अन्य स्रोतों - रासायनिक रूप से शोधित नल के पानी या अन्य प्रांतों से प्राप्त खनिज पानी - से आता है, चीन को लगता है कि हिमालय के ग्लेशियर के पानी को बोतलबंद करना विकास का एक नया साधन सिद्ध हो सकता है, जिसमें सरकार द्वारा दी जानेवाली सब्सिडी शामिल होती है। सरकार के "तिब्बत का अच्छा पानी दुनिया के साथ साझा करें" अभियान के भाग के रूप में, चीन पानी बोतलबंद करनेवालों को कर अवकाश, कम ब्याज पर ऋण, और प्रति क्यूबिक मीटर (या 1,000 लीटर) के लिए CN¥ 3 ($0.45) के मामूली से निकासी शुल्क जैसे प्रोत्साहन दे रहा है। चीनी अधिकारियों द्वारा तिब्बत में पिछले शिशिर में घोषित दस-वर्षीय योजना के अनुसार, मात्र अगले चार वर्षों में ग्लेशियर के पानी की निकासी में 50 गुना से अधिक की वृद्धि होगी, जिसमें निर्यात के लिए पानी भी शामिल है।
लगभग 30 कंपनियों को पहले ही तिब्बत की बर्फ से ढकी चोटियों के पानी को बोतलबंद करने के लिए लाइसेंस प्रदान किए जा चुके हैं। चीन में दो लोकप्रिय ब्रांड हैं कोमोलंगमा ग्लेशियर, जिसका स्रोत नेपाल की सीमा पर माउंट एवरेस्ट से जुड़ा हुआ संरक्षित भंडार माना जाता है, और 9000 इयर्स, जिसका यह नाम इसके हिमनदों के स्रोत की संभावित आयु के आधार पर रखा गया है। एक तीसरा ब्रांड, तिब्बत 5100 है, जिसका यह नाम इसलिए रखा गया है क्योंकि इसके पानी की बोतलबंदी नेनचेन तंगलाह पर्वत श्रेणी में 5,100 मीटर ऊंचे उस ग्लेशियर के झरने पर की जाती है जो यार्लंग त्संग्पो (या ब्रह्मपुत्र नदी) को पानी की आपूर्ति करता है - जो पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश के लिए अति महत्वपूर्ण है।
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दुर्भाग्य की बात यह है कि चीनी बोतलबंद पानी उद्योग ग्लेशियर के पानी को मुख्य रूप से पूर्वी हिमालय क्षेत्र से प्राप्त कर रहा है, जहां पर हिम और बर्फ के क्षेत्रों के तेजी से पिघलने के कारण अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय में पहले से ही चिंताएँ व्यक्त की जा रही हैं। इसके विपरीत, पश्चिमी हिमालय में ग्लेशियर अधिक स्थिर हैं और संभवतः उनमें बढ़ोतरी भी हो रही है। चीन की विज्ञान अकादमी ने भी एक दस्तावेज़ में उल्लेख किया है कि इस क्षेत्र में और पूर्वी हिमालय के ग्लेशियरों के क्षेत्र में भारी कमी हो रही है।
तिब्बती पठार, जो दुनिया का सबसे अधिक जैव विविध लेकिन पारिस्थितिकी रूप से नाजुक क्षेत्रों में से एक है, अब औसत वैश्विक दर की तुलना में दुगुनी से अधिक दर पर गर्म हो रहा है। तिब्बत एशियाई जल विज्ञान और जलवायु में जिस महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है, उसे कम करने के अलावा, यह प्रवृत्ति तिब्बती पठार के अद्वितीय पक्षी, स्तनपायी, उभयचर, सरीसृप, मछली, और औषधीय पौधों की प्रजातियों को भी खतरे में डालती है।
इतना ही नहीं, चीन तिब्बत के संसाधनों की निरंकुश निकासी पर पुनर्विचार भी नहीं कर रहा है। इसके विपरीत, तिब्बत तक रेलवे का निर्माण करने के बाद से - पहला निर्माण 2006 में पूरा किया गया था, जिसके विस्तार को 2014 में खोला गया था - चीन के प्रयास लगातार बढ़ते जा रहे हैं।
पानी के अलावा, तिब्बत दुनिया का शीर्ष लिथियम उत्पादक है; यह चीन के तांबा और क्रोमाइट (इस्पात के उत्पादन में प्रयुक्त) सहित कई धातुओं के सबसे बड़े भंडारों का प्रमुख स्थान है; और हीरे, सोने और यूरेनियम का महत्वपूर्ण स्रोत है। हाल के वर्षों में, चीन-नियंत्रित कंपनियों ने इस पठार पर अनाप-शनाप खनन करना आरंभ कर दिया है जिससे न केवल तिब्बतियों के लिए पवित्र स्थलों को क्षति पहुँच रही है बल्कि इससे तिब्बत की पारिस्थितिकी का और अधिक क्षरण हो रहा है - इसमें इसके कीमती पानी को प्रदूषित किए जाने से होनेवाली क्षति भी शामिल है।
वस्तुतः इसी प्रकार की कार्रवाइयों के कारण सर्वप्रथम चीन में पानी का संकट पैदा हुआ था। अपनी पिछली गलतियों से सबक सीखने के बजाय, चीन उनमें और अधिक इजाफा कर रहा है, आर्थिक विकास के प्रति इसके अविवेकपूर्ण दृष्टिकोण के फलस्वरूप मजबूर होकर अधिकाधिक लोगों और पारिस्थितिक तंत्रों को इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है।
दरअसल, चीन ने गहन जल खनन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ कोई प्रभावी सुरक्षा उपाय लागू नहीं किए हैं। बोतलबंद पानी उन संरक्षित भंडारों से भी प्राप्त किया जा रहा है जहां ग्लेशियर पहले से घटने शुरू हो गए हैं। इस बीच, ग्लेशियर से पानी निकालने में आई तेज़ी अत्यधिक प्रदूषणकर्ता सहायक उद्योगों को आकर्षित करने लग गई है जिनमें प्लास्टिक की पानी की बोतलों के निर्माता भी शामिल हैं।
यह न भूलें: ग्लेशियर-जल के खनन से जैव विविधता की हानि, पानी का अपवाह अपर्याप्त मात्रा में होने के कारण कतिपय पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में अवरोध, और ग्लेशियर के झरनों में पानी के कम या खराब होने की संभावना की दृष्टि से पर्यावरण संबंधी भारी लागतें आती हैं। इसके अलावा, हिमालय से ग्लेशियर-जल को प्राप्त करने, संसाधित करने, बोतलबंद करने, और हज़ारों मील दूर बसे चीन के शहरों तक परिवहन करने में बहुत अधिक मात्रा में कार्बन भी पैदा होता है।
ग्लेशियर-जल को बोतलबंद करना चीन की प्यास बुझाने के लिए सही तरीका नहीं है। पर्यावरण और आर्थिक दोनों ही दृष्टियों से, बेहतर विकल्प यह होगा कि शहरों में नल के पानी को सुरक्षित बनाने के लिए जल-शोधन सुविधाओं में निवेश को बढ़ाया जाए। दुर्भाग्यवश, चीन अपनी वर्तमान राह पर चलते रहने की हठ पर अड़ा हुआ दिखाई देता है - यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जिससे एशिया के पर्यावरण, अर्थव्यवस्था, और राजनीतिक स्थिरता को अपूरणीय और गंभीर नुकसान हो सकता है।
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Despite its ongoing economic stagnation and aging population, Germany’s outlook is far from hopeless. But to restore its growth momentum, it must embrace the realities of the twenty-first century, invest in high-potential emerging sectors, and adapt to an increasingly volatile geopolitical landscape.
urge policymakers to pursue bold structural reforms, rather than clinging to an outdated growth model.
हांगकांग - हिमालय की पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिए जब ख़तरों की पहचान की जाती है, तो चीन सबसे अलग दिखाई देता है। वर्षों से, पीपुल्स रिपब्लिक संसाधन संपन्न तिब्बती पठार पर नदियों को बेहताशा नियंत्रित करने और खनिज संपदा का निरंकुश दोहन करने में लगा हुआ है। अब वह दुनिया सबसे बड़े और बहुत तेजी से पनप रहे इस क्षेत्र में ग्लेशियर के पानी को अनापशनाप निकालने वाले बोतलबंद पानी के अपने उद्योग को प्रोत्साहित करने के प्रयासों में भारी बढ़ोतरी कर रहा है।
ग्रेट हिमालय में 18,000 की ऊंचाई वाले ग्लेशियरों में से लगभग तीन-चौथाई ग्लेशियर तिब्बत में हैं, जबकि बाकी भारत और इसके आस-पड़ोस में हैं। असंख्य पर्वतीय झरनों और झीलों के साथ तिब्बती ग्लेशियर, मेकांग और चांग से लेकर सिंधु और द यैलो सहित, एशिया की बड़ी नदियों को पानी की आपूर्ति करते हैं। वास्तव में, तिब्बती पठार एशिया की लगभग सभी प्रमुख नदी प्रणालियों का उद्गम स्थल हैं।
तिब्बत को अपने अधिकार में करके, चीन ने एक तरह से एशिया के पानी का नक्शा ही बदल दिया है। और इसका इसे और अधिक बदलने का इरादा है, क्योंकि यह सीमा-पार नदी तटों के प्रवाहों की दिशा को बदल देनेवाले बाँधों का निर्माण कर रहा है जिनके फलस्वरूप उसे नदी के मुहाने वाले देशों पर महत्वपूर्ण लाभ की स्थिति प्राप्त हो रही है।
लेकिन चीन विशुद्ध रूप से सामरिक हितों से प्रेरित नहीं है। चूँकि इसकी नदियों, झीलों, और जलाशयों में मौजूद अधिकतर पानी मानव के उपयोग लिए योग्य नहीं है, स्वच्छ पानी चीन के लिए नए तेल के समान हो गया है, यह एक ऐसा अनमोल और महत्वपूर्ण संसाधन बन गया है जिसके अत्यधिक दोहन से प्राकृतिक वातावरण के नष्ट होने का जोखिम पैदा हो गया है। नल के पानी के सुरक्षित होने के बारे में संदेह रखनेवाली जनता को संतुष्ट कर सकनेवाले प्रमुख पेय जल को हिमालय के ग्लेशियरों से प्राप्त करने के लिए अपनी कंपनियों को प्रोत्साहित करके, चीन एशिया भर में पर्यावरण के ख़तरों को बढ़ा रहा है।
हालांकि चीन में वर्तमान में बेचा जा रहा अधिकतर बोतलबंद पानी वर्तमान में अन्य स्रोतों - रासायनिक रूप से शोधित नल के पानी या अन्य प्रांतों से प्राप्त खनिज पानी - से आता है, चीन को लगता है कि हिमालय के ग्लेशियर के पानी को बोतलबंद करना विकास का एक नया साधन सिद्ध हो सकता है, जिसमें सरकार द्वारा दी जानेवाली सब्सिडी शामिल होती है। सरकार के "तिब्बत का अच्छा पानी दुनिया के साथ साझा करें" अभियान के भाग के रूप में, चीन पानी बोतलबंद करनेवालों को कर अवकाश, कम ब्याज पर ऋण, और प्रति क्यूबिक मीटर (या 1,000 लीटर) के लिए CN¥ 3 ($0.45) के मामूली से निकासी शुल्क जैसे प्रोत्साहन दे रहा है। चीनी अधिकारियों द्वारा तिब्बत में पिछले शिशिर में घोषित दस-वर्षीय योजना के अनुसार, मात्र अगले चार वर्षों में ग्लेशियर के पानी की निकासी में 50 गुना से अधिक की वृद्धि होगी, जिसमें निर्यात के लिए पानी भी शामिल है।
लगभग 30 कंपनियों को पहले ही तिब्बत की बर्फ से ढकी चोटियों के पानी को बोतलबंद करने के लिए लाइसेंस प्रदान किए जा चुके हैं। चीन में दो लोकप्रिय ब्रांड हैं कोमोलंगमा ग्लेशियर, जिसका स्रोत नेपाल की सीमा पर माउंट एवरेस्ट से जुड़ा हुआ संरक्षित भंडार माना जाता है, और 9000 इयर्स, जिसका यह नाम इसके हिमनदों के स्रोत की संभावित आयु के आधार पर रखा गया है। एक तीसरा ब्रांड, तिब्बत 5100 है, जिसका यह नाम इसलिए रखा गया है क्योंकि इसके पानी की बोतलबंदी नेनचेन तंगलाह पर्वत श्रेणी में 5,100 मीटर ऊंचे उस ग्लेशियर के झरने पर की जाती है जो यार्लंग त्संग्पो (या ब्रह्मपुत्र नदी) को पानी की आपूर्ति करता है - जो पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश के लिए अति महत्वपूर्ण है।
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दुर्भाग्य की बात यह है कि चीनी बोतलबंद पानी उद्योग ग्लेशियर के पानी को मुख्य रूप से पूर्वी हिमालय क्षेत्र से प्राप्त कर रहा है, जहां पर हिम और बर्फ के क्षेत्रों के तेजी से पिघलने के कारण अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय में पहले से ही चिंताएँ व्यक्त की जा रही हैं। इसके विपरीत, पश्चिमी हिमालय में ग्लेशियर अधिक स्थिर हैं और संभवतः उनमें बढ़ोतरी भी हो रही है। चीन की विज्ञान अकादमी ने भी एक दस्तावेज़ में उल्लेख किया है कि इस क्षेत्र में और पूर्वी हिमालय के ग्लेशियरों के क्षेत्र में भारी कमी हो रही है।
तिब्बती पठार, जो दुनिया का सबसे अधिक जैव विविध लेकिन पारिस्थितिकी रूप से नाजुक क्षेत्रों में से एक है, अब औसत वैश्विक दर की तुलना में दुगुनी से अधिक दर पर गर्म हो रहा है। तिब्बत एशियाई जल विज्ञान और जलवायु में जिस महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है, उसे कम करने के अलावा, यह प्रवृत्ति तिब्बती पठार के अद्वितीय पक्षी, स्तनपायी, उभयचर, सरीसृप, मछली, और औषधीय पौधों की प्रजातियों को भी खतरे में डालती है।
इतना ही नहीं, चीन तिब्बत के संसाधनों की निरंकुश निकासी पर पुनर्विचार भी नहीं कर रहा है। इसके विपरीत, तिब्बत तक रेलवे का निर्माण करने के बाद से - पहला निर्माण 2006 में पूरा किया गया था, जिसके विस्तार को 2014 में खोला गया था - चीन के प्रयास लगातार बढ़ते जा रहे हैं।
पानी के अलावा, तिब्बत दुनिया का शीर्ष लिथियम उत्पादक है; यह चीन के तांबा और क्रोमाइट (इस्पात के उत्पादन में प्रयुक्त) सहित कई धातुओं के सबसे बड़े भंडारों का प्रमुख स्थान है; और हीरे, सोने और यूरेनियम का महत्वपूर्ण स्रोत है। हाल के वर्षों में, चीन-नियंत्रित कंपनियों ने इस पठार पर अनाप-शनाप खनन करना आरंभ कर दिया है जिससे न केवल तिब्बतियों के लिए पवित्र स्थलों को क्षति पहुँच रही है बल्कि इससे तिब्बत की पारिस्थितिकी का और अधिक क्षरण हो रहा है - इसमें इसके कीमती पानी को प्रदूषित किए जाने से होनेवाली क्षति भी शामिल है।
वस्तुतः इसी प्रकार की कार्रवाइयों के कारण सर्वप्रथम चीन में पानी का संकट पैदा हुआ था। अपनी पिछली गलतियों से सबक सीखने के बजाय, चीन उनमें और अधिक इजाफा कर रहा है, आर्थिक विकास के प्रति इसके अविवेकपूर्ण दृष्टिकोण के फलस्वरूप मजबूर होकर अधिकाधिक लोगों और पारिस्थितिक तंत्रों को इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है।
दरअसल, चीन ने गहन जल खनन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ कोई प्रभावी सुरक्षा उपाय लागू नहीं किए हैं। बोतलबंद पानी उन संरक्षित भंडारों से भी प्राप्त किया जा रहा है जहां ग्लेशियर पहले से घटने शुरू हो गए हैं। इस बीच, ग्लेशियर से पानी निकालने में आई तेज़ी अत्यधिक प्रदूषणकर्ता सहायक उद्योगों को आकर्षित करने लग गई है जिनमें प्लास्टिक की पानी की बोतलों के निर्माता भी शामिल हैं।
यह न भूलें: ग्लेशियर-जल के खनन से जैव विविधता की हानि, पानी का अपवाह अपर्याप्त मात्रा में होने के कारण कतिपय पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में अवरोध, और ग्लेशियर के झरनों में पानी के कम या खराब होने की संभावना की दृष्टि से पर्यावरण संबंधी भारी लागतें आती हैं। इसके अलावा, हिमालय से ग्लेशियर-जल को प्राप्त करने, संसाधित करने, बोतलबंद करने, और हज़ारों मील दूर बसे चीन के शहरों तक परिवहन करने में बहुत अधिक मात्रा में कार्बन भी पैदा होता है।
ग्लेशियर-जल को बोतलबंद करना चीन की प्यास बुझाने के लिए सही तरीका नहीं है। पर्यावरण और आर्थिक दोनों ही दृष्टियों से, बेहतर विकल्प यह होगा कि शहरों में नल के पानी को सुरक्षित बनाने के लिए जल-शोधन सुविधाओं में निवेश को बढ़ाया जाए। दुर्भाग्यवश, चीन अपनी वर्तमान राह पर चलते रहने की हठ पर अड़ा हुआ दिखाई देता है - यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जिससे एशिया के पर्यावरण, अर्थव्यवस्था, और राजनीतिक स्थिरता को अपूरणीय और गंभीर नुकसान हो सकता है।