जोहान्सबर्ग - केन्या हाथीदाँत के अपने पूरे ज़खीरों को नष्ट करने जा रहा है। अवैध रूप से एकत्र किया गया (शिकारियों या व्यापारियों से ज़ब्त किया गया) और प्राकृतिक रूप से (प्राकृतिक मृत्यु से) प्राप्त होनेवाला, दोनों ही प्रकार का 100 मीट्रिक टन से अधिक का “व्हाइट गोल्ड” इस सप्ताह के अंत में धुएँ में विलीन हो जाएगा। चीन में – जहाँ दुनिया के हाथीदाँत की सबसे अधिक मात्रा में खपत होती है या उसके ज़खीरे हैं – हाल ही में बताई गई कीमत $1,100 प्रति किलोग्राम है, जिससे जलाई जानेवाली सामग्री का कुल मूल्य मोटे तौर पर $110 मिलियन बैठता है।
अधिकतर अर्थशास्त्रियों के अनुसार, इतने अधिक मूल्य वाली किसी चीज़ को नष्ट करने का विचार अभिशाप है। लेकिन केन्या जैसे किसी भी गरीब देश के लिए अपने हाथीदाँत की दौलत को आग की लपटों के हवाले करने के लिए ठोस कारण हैं।
आरंभकर्ताओं के लिए, ज़खीरों को नष्ट करने के फलस्वरूप पूर्व एशिया में माँग में कमी के अभियानों की विश्वसनीयता को बल मिलता है, जिसके बिना अवैध शिकार की समस्या को कभी भी हल नहीं किया जा सकेगा। माँग में कमी करने का उद्देश्य उपभोक्ता की रुचियों को बदल कर इस उत्पाद के लिए बाजार को कमजोर करना है। जब कीमतों में कमी होगी, तो शिकारियों के लिए हाथियों को मारने के लिए प्रोत्साहन कम होगा।
जब देश अपने ज़खीरों को बनाए रखते हैं, तो वे इस बात का संकेत देते हैं कि उन्हें आशा है कि वे भविष्य में हाथीदाँत बेचने में सक्षम होंगे। इससे माँग में कमी के प्रयासों की विश्वसनीयता को बट्टा लगता है; यदि व्यापार के किसी दिन वैध होने की संभावना है, तो हाथीदाँत की खपत के साथ जुड़ा कोई भी कलंक धुल जाएगा।
विनियमित, अंतर्राष्ट्रीय हाथीदाँत के कानूनी व्यापार के समर्थक यह तर्क देते हैं कि माँग में कमी के प्रयास सीमित वैध आपूर्ति के साथ-साथ रह सकते हैं। लेकिन इस तरह के तर्क में एक खतरनाक कमजोरी है: इसमें यह मान लिया जाता है कि कानूनी कार्टल – जो आपूर्ति के विनियमन के लिए प्रस्तावित मॉडल है - बाजार में कम कीमत पर हाथीदाँत उपलब्ध करके अवैध आपूर्तिकर्ताओं को बाहर कर देगा।
यह धारणा पूर्णतः संदिग्ध है। किसी कानूनी व्यवस्था के ज़रिए बेची जानेवाली मात्राएँ बाजार को पाटने और कीमत को कम करने के लिए अपर्याप्त होंगी। दरअसल, चूंकि वैध व्यापार से माँग में कमी के प्रयासों को क्षति पहुँचेगी, इसलिए हाथीदाँत की कीमत अधिक रहने की संभावना है, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि अवैध शिकार बदस्तूर जारी रहता है।
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कुछ दक्षिणी अफ्रीकी देशों का तर्क है कि हाथियों की आबादी को स्वस्थ बनाए रखने के उद्देश्य से संरक्षण प्रयासों को निधि प्रदान करने के लिए उन्हें अपने हाथीदाँतों को सीआईटीईएस-अनुमति वाली एकबारगी बिक्री के रूप में बेचने की अनुमति दी जानी चाहिए। लेकिन, कुछ देशों में इस बात की कम संभावना को देखते हुए कि राजस्व का उपयोग इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए किया जाएगा, यह स्पष्ट नहीं है कि इससे अधिक धन प्राप्त होगा।
सीआईटीईएस के विनियमों के तहत , सरकारों को केवल अन्य सरकारों को ही बिक्री करने की अनुमति होती है। लेकिन दूसरी सरकारें जितना पैसा देने के लिए तैयार होंगी वह अवैध मूल्य के दसवें हिस्से जितना कम हो सकता है। और फिर भी, सरकारें केवल प्राकृतिक रूप से प्राप्त किए गए हाथीदाँत को ही बेच सकती हैं, शिकारियों या अवैध डीलरों से ज़ब्त किए गए माल को नहीं।
चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका घरेलू हाथीदाँत के व्यापार पर प्रतिबंध लगाने की प्रक्रिया में हैं, इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि अफ्रीका के ज़खीरों को खरीदने में किन सरकारों की दिलचस्पी होगी। वियतनाम और लाओस संभावित उम्मीदवार हैं, लेकिन वे भी बदनाम "स्वर्ण त्रिभुज" का हिस्सा हैं जहाँ वन्य जीवन और वन्य जीवन के उत्पादों का अवैध व्यापार फलफूल रहा है। हाथीदाँत के कानूनी व्यापार के असंतोषजनक तरीके से विनियमित बाजारों में स्थानांतरित हो जाने की संभावना को देखते हुए ठोस अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया की आवश्यकता प्रतीत होती है, जिसका नेतृत्व अफ्रीकी सरकारों को चीन जैसे देशों के साथ मिलकर हाथी संरक्षण पहल जैसे गठबंधनों के जरिए करना चाहिए।
ज़खीरों का संरक्षण करना - न कि उन्हें जलाना - निकृष्ट विकल्प है। किसी ज़खीरे को बनाए रखना प्रशासकीय और प्रचालन की दृष्टि से महँगा - और अक्सर बेकार होता है। इन्वेंटरी प्रबंधन श्रम-प्रधान और प्रौद्योगिकी दृष्टि से महँगा होता है। हाथीदाँत को भी वातानुकूलित रखना चाहिए ताकि हाथी के नुकीले दाँतों में दरार न पड़े या वे भुरभुरे न हो जाएँ (उच्च मूल्यों को आकर्षित करने के लिए ये महत्वपूर्ण कारक हैं)।
भविष्य में हाथीदाँत को बेच पाने की संभावना कम होने को देखते हुए, इसके भंडारण और संरक्षण की लागत वसूल होने की संभावना नहीं है। इस बीच, आपराधिक गिरोहों को सामान चोरी-छिपे ले जाने के लिए केवल मुट्ठी भर स्थानीय अधिकारियों को रिश्वत देने की ज़रूरत होती है।
इतना ही नहीं, इसके ज़खीरों को बनाए रखने के लिए निवेश की अवसर लागतें उच्च होती हैं। ज़खीरों के प्रबंधन के लिए आवंटित दुर्लभ मानव और वित्तीय संसाधनों को लैंडस्केप संरक्षण के प्रयासों (जो पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान के जरिए समय के साथ आत्मनिर्भर बन सकते हैं) की ओर अधिक कुशलता से निर्देशित किया जा सकता है।
अंत में, लाखों डॉलर के हाथीदाँत को जलाने का निर्विवाद रूप से प्रतीकात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे यह स्पष्ट संदेश जाता है: हाथीदाँत हाथियों का होता है और किसी और का नहीं। और इससे यह स्पष्ट होता है कि मरे हुए हाथियों की बजाय जीवित हाथियों का मूल्य अधिक होता है।
दरअसल, हाथियों का मूल्य मात्र प्रतीकात्मक होता है। हाथी महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्रों के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण प्रजातियाँ हैं। और फिर भी अफ्रीका में बड़े पैमाने पर अवैध शिकार से हाथियों की आबादियाँ नष्ट हो रही हैं, हर वर्ष औसतन 30,000 हाथी मारे जाते हैं।
अवैध शिकार का समुदायों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, कई लोगों की कीमत पर कुछ लोग इसका लाभ उठाते हैं। हाल की शोध से पता चला है कि उत्तरी केन्या में सामुदायिक संरक्षण क्षेत्र (वन्य जीव संरक्षण क्षेत्रों के लिए अलग निर्धारित क्षेत्र), लैंडस्केप (और इसलिए हाथी) के संरक्षण के लिए अत्यधिक प्रभावी रूप हैं, बशर्ते उचित प्रोत्साहनों की व्यवस्था हो। यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि केन्या और तंजानिया जैसे देशों में अधिकतर वन्य जीवन औपचारिक रूप से संरक्षित क्षेत्रों के बाहर मौजूद है।
बुद्धिमत्तापूर्ण और कुशल निर्णय लेने के लिए केन्या की सराहना की जानी चाहिए। इसके पड़ोसियों, और साथ ही सुदूर दक्षिण के देशों को भी इसके उदाहरण का अनुसरण करना चाहिए। आदर्श रूप में, क्षेत्रीय रूप से सामूहिक कार्रवाई करने की समस्या को दूर करने के लिए श्रेणी-राज्य वाले सभी देशों को अपने ज़खीरे नष्ट कर देने चाहिए। ऐसा करने से वैश्विक बाजार को एक स्पष्ट संकेत जाएगा: हाथीदाँत बिक्री के लिए नहीं है, अब भी नहीं और भविष्य में भी नहीं।
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The World Trade Organization's precipitous decline into irrelevance should serve as a warning to the International Monetary Fund's shareholder governments, its management, and everyone who values multilateral economic cooperation. In a rapidly changing world, global institutions must reform or die.
propose incremental changes to keep developing and emerging economies on board and engaged.
The old Europe of the Cold War sought comfort in the past and confidence in the solitary US leadership that defined the era. Unfortunately, when it comes to its own security, Europe seemingly remains in a time warp, stuck somewhere before 1989.
laments that nostalgia for US leadership unites a continent that must define the decisive action needed now.
जोहान्सबर्ग - केन्या हाथीदाँत के अपने पूरे ज़खीरों को नष्ट करने जा रहा है। अवैध रूप से एकत्र किया गया (शिकारियों या व्यापारियों से ज़ब्त किया गया) और प्राकृतिक रूप से (प्राकृतिक मृत्यु से) प्राप्त होनेवाला, दोनों ही प्रकार का 100 मीट्रिक टन से अधिक का “व्हाइट गोल्ड” इस सप्ताह के अंत में धुएँ में विलीन हो जाएगा। चीन में – जहाँ दुनिया के हाथीदाँत की सबसे अधिक मात्रा में खपत होती है या उसके ज़खीरे हैं – हाल ही में बताई गई कीमत $1,100 प्रति किलोग्राम है, जिससे जलाई जानेवाली सामग्री का कुल मूल्य मोटे तौर पर $110 मिलियन बैठता है।
अधिकतर अर्थशास्त्रियों के अनुसार, इतने अधिक मूल्य वाली किसी चीज़ को नष्ट करने का विचार अभिशाप है। लेकिन केन्या जैसे किसी भी गरीब देश के लिए अपने हाथीदाँत की दौलत को आग की लपटों के हवाले करने के लिए ठोस कारण हैं।
आरंभकर्ताओं के लिए, ज़खीरों को नष्ट करने के फलस्वरूप पूर्व एशिया में माँग में कमी के अभियानों की विश्वसनीयता को बल मिलता है, जिसके बिना अवैध शिकार की समस्या को कभी भी हल नहीं किया जा सकेगा। माँग में कमी करने का उद्देश्य उपभोक्ता की रुचियों को बदल कर इस उत्पाद के लिए बाजार को कमजोर करना है। जब कीमतों में कमी होगी, तो शिकारियों के लिए हाथियों को मारने के लिए प्रोत्साहन कम होगा।
जब देश अपने ज़खीरों को बनाए रखते हैं, तो वे इस बात का संकेत देते हैं कि उन्हें आशा है कि वे भविष्य में हाथीदाँत बेचने में सक्षम होंगे। इससे माँग में कमी के प्रयासों की विश्वसनीयता को बट्टा लगता है; यदि व्यापार के किसी दिन वैध होने की संभावना है, तो हाथीदाँत की खपत के साथ जुड़ा कोई भी कलंक धुल जाएगा।
विनियमित, अंतर्राष्ट्रीय हाथीदाँत के कानूनी व्यापार के समर्थक यह तर्क देते हैं कि माँग में कमी के प्रयास सीमित वैध आपूर्ति के साथ-साथ रह सकते हैं। लेकिन इस तरह के तर्क में एक खतरनाक कमजोरी है: इसमें यह मान लिया जाता है कि कानूनी कार्टल – जो आपूर्ति के विनियमन के लिए प्रस्तावित मॉडल है - बाजार में कम कीमत पर हाथीदाँत उपलब्ध करके अवैध आपूर्तिकर्ताओं को बाहर कर देगा।
यह धारणा पूर्णतः संदिग्ध है। किसी कानूनी व्यवस्था के ज़रिए बेची जानेवाली मात्राएँ बाजार को पाटने और कीमत को कम करने के लिए अपर्याप्त होंगी। दरअसल, चूंकि वैध व्यापार से माँग में कमी के प्रयासों को क्षति पहुँचेगी, इसलिए हाथीदाँत की कीमत अधिक रहने की संभावना है, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि अवैध शिकार बदस्तूर जारी रहता है।
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सीआईटीईएस के विनियमों के तहत , सरकारों को केवल अन्य सरकारों को ही बिक्री करने की अनुमति होती है। लेकिन दूसरी सरकारें जितना पैसा देने के लिए तैयार होंगी वह अवैध मूल्य के दसवें हिस्से जितना कम हो सकता है। और फिर भी, सरकारें केवल प्राकृतिक रूप से प्राप्त किए गए हाथीदाँत को ही बेच सकती हैं, शिकारियों या अवैध डीलरों से ज़ब्त किए गए माल को नहीं।
चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका घरेलू हाथीदाँत के व्यापार पर प्रतिबंध लगाने की प्रक्रिया में हैं, इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि अफ्रीका के ज़खीरों को खरीदने में किन सरकारों की दिलचस्पी होगी। वियतनाम और लाओस संभावित उम्मीदवार हैं, लेकिन वे भी बदनाम "स्वर्ण त्रिभुज" का हिस्सा हैं जहाँ वन्य जीवन और वन्य जीवन के उत्पादों का अवैध व्यापार फलफूल रहा है। हाथीदाँत के कानूनी व्यापार के असंतोषजनक तरीके से विनियमित बाजारों में स्थानांतरित हो जाने की संभावना को देखते हुए ठोस अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया की आवश्यकता प्रतीत होती है, जिसका नेतृत्व अफ्रीकी सरकारों को चीन जैसे देशों के साथ मिलकर हाथी संरक्षण पहल जैसे गठबंधनों के जरिए करना चाहिए।
ज़खीरों का संरक्षण करना - न कि उन्हें जलाना - निकृष्ट विकल्प है। किसी ज़खीरे को बनाए रखना प्रशासकीय और प्रचालन की दृष्टि से महँगा - और अक्सर बेकार होता है। इन्वेंटरी प्रबंधन श्रम-प्रधान और प्रौद्योगिकी दृष्टि से महँगा होता है। हाथीदाँत को भी वातानुकूलित रखना चाहिए ताकि हाथी के नुकीले दाँतों में दरार न पड़े या वे भुरभुरे न हो जाएँ (उच्च मूल्यों को आकर्षित करने के लिए ये महत्वपूर्ण कारक हैं)।
भविष्य में हाथीदाँत को बेच पाने की संभावना कम होने को देखते हुए, इसके भंडारण और संरक्षण की लागत वसूल होने की संभावना नहीं है। इस बीच, आपराधिक गिरोहों को सामान चोरी-छिपे ले जाने के लिए केवल मुट्ठी भर स्थानीय अधिकारियों को रिश्वत देने की ज़रूरत होती है।
इतना ही नहीं, इसके ज़खीरों को बनाए रखने के लिए निवेश की अवसर लागतें उच्च होती हैं। ज़खीरों के प्रबंधन के लिए आवंटित दुर्लभ मानव और वित्तीय संसाधनों को लैंडस्केप संरक्षण के प्रयासों (जो पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए भुगतान के जरिए समय के साथ आत्मनिर्भर बन सकते हैं) की ओर अधिक कुशलता से निर्देशित किया जा सकता है।
अंत में, लाखों डॉलर के हाथीदाँत को जलाने का निर्विवाद रूप से प्रतीकात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे यह स्पष्ट संदेश जाता है: हाथीदाँत हाथियों का होता है और किसी और का नहीं। और इससे यह स्पष्ट होता है कि मरे हुए हाथियों की बजाय जीवित हाथियों का मूल्य अधिक होता है।
दरअसल, हाथियों का मूल्य मात्र प्रतीकात्मक होता है। हाथी महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्रों के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण प्रजातियाँ हैं। और फिर भी अफ्रीका में बड़े पैमाने पर अवैध शिकार से हाथियों की आबादियाँ नष्ट हो रही हैं, हर वर्ष औसतन 30,000 हाथी मारे जाते हैं।
अवैध शिकार का समुदायों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, कई लोगों की कीमत पर कुछ लोग इसका लाभ उठाते हैं। हाल की शोध से पता चला है कि उत्तरी केन्या में सामुदायिक संरक्षण क्षेत्र (वन्य जीव संरक्षण क्षेत्रों के लिए अलग निर्धारित क्षेत्र), लैंडस्केप (और इसलिए हाथी) के संरक्षण के लिए अत्यधिक प्रभावी रूप हैं, बशर्ते उचित प्रोत्साहनों की व्यवस्था हो। यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि केन्या और तंजानिया जैसे देशों में अधिकतर वन्य जीवन औपचारिक रूप से संरक्षित क्षेत्रों के बाहर मौजूद है।
बुद्धिमत्तापूर्ण और कुशल निर्णय लेने के लिए केन्या की सराहना की जानी चाहिए। इसके पड़ोसियों, और साथ ही सुदूर दक्षिण के देशों को भी इसके उदाहरण का अनुसरण करना चाहिए। आदर्श रूप में, क्षेत्रीय रूप से सामूहिक कार्रवाई करने की समस्या को दूर करने के लिए श्रेणी-राज्य वाले सभी देशों को अपने ज़खीरे नष्ट कर देने चाहिए। ऐसा करने से वैश्विक बाजार को एक स्पष्ट संकेत जाएगा: हाथीदाँत बिक्री के लिए नहीं है, अब भी नहीं और भविष्य में भी नहीं।