Flood water in Sylhet City Md. Akhlas Uddin/ZumaPress

संपोषणीय भविष्य सुनिश्चित करना

लंदन - जब कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंजिल्स ने लिखा था कि “जो कुछ भी ठोस है, वह हवा में विलीन हो जाता है,” उस समय उनकी मंशा औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप स्थापित सामाजिक मूल्यों के ध्वंसात्मक रूपांतरणों को लेकर रूपक बांधने की थी। आज, उनके शब्दों को शाब्दिक अर्थों में लिया जा सकता है: कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन और पर्यावरण में छोड़े जाने वाले अन्य औद्योगिक प्रदूषण इस ग्रह को बदल रहे हैं – जिसके पर्यावरण, स्वास्थ्य, जनसंख्या के आवागमन और सामाजिक न्याय संबंधी बड़े निहितार्थ हैं। दुनिया एक चौराहे पर खड़ी है और हमने इन क्षेत्रों में जो भारी प्रगति की है वह हवा में तिरोहित हो सकती है।

2007 में नेल्सन मंडेला ने भूतपूर्व नेताओं के इस स्वतंत्र समूह को  “सत्ता में सच बोलने” के अधिदेश के साथ इसी तरह के जोखिमों से निपटने के लिए दि एल्डर्स की स्थापना की थी। इस महीने बाद में संयुक्त राष्ट्र महासभा में संपोषणीय विकास के नए लक्ष्यों के समारंभ पर हम यही करेंगे।

एसडीजी मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स (एमडीजी) की जगह लेंगे जिन्होंने 2000-2015 तक अंतर्राष्ट्रीय विकास के प्रयासों का मार्गदर्शन किया था। एमडीजी ने अशिक्षा, रोग और भूख से बचने में लाखों लोगों की मदद की और विकास को वैश्विक राजनीतिक कार्यसूची के मूल में रखा। बहरहाल, उनका समग्र प्रभाव प्रायः अपर्याप्त था, विशेष रूप से भंगुर, संघर्ष ग्रस्त राष्ट्रों में – और वे संपोषणीयता को अपने लक्ष्यों में शामिल करने में असफल रहे हैं।

एसडीजी आगे की दिशा में लंबी छलांग के रूप में हैं, क्योंकि वे चुनौतियों के बीच की महत्त्वपूर्ण कड़ियों को पहचानते हैं जिनका – ग़रीबी को उसके सभी रूपों, लिंगी असमानता, जलवायु परिवर्तन, और लचर शासन सहित – क्रमबद्ध ढंग से समाधान किया जाना चाहिए। हो सकता है कि अगल-अलग सत्रह लक्ष्य दुसाध्य जान पड़ें लेकिन उनके संचित प्रभाव का अर्थ यह होना चाहिए कि कोई भी विषय या कोई भी क्षेत्र दरारों में न गिर न जाए।  अंततः संपोषणीयता को उसी तर्ज पर वैश्विक विकास के साथ एकीकृत किया जा रहा है, जिस तरह कि आंदोलनकारी दशकों से मांग करते आ रहे थे।

क्रमशः वैश्विक उत्तर और दक्षिण के भूतपूर्व नेताओं के रूप में हमें इस बात की विशेष रूप से प्रसन्नता है कि एसडीजी न केवल विकासशील दुनिया के बल्कि संयुक्त राष्ट्र के सभी देशों पर लागू होंगे। इस तरह, हम उम्मीद करते हैं कि वे अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार घोषणा जितने "सार्वभौम" हो जाएंगे - जो निष्पक्षता की लड़ाई में नागरिक अस्त्रागार का एक महत्त्वपूर्ण अस्त्र है।

क्रियान्वयन और उत्तरदायिता कुंजी हैं। अच्छे शब्द ही पर्याप्त नहीं हैं; नेताओं को उनको कार्य में परिणत करने के लिए कृतसंकल्प होना चाहिए और नागरिक समुदाय को उनकी प्रगति पर सतर्कतापूर्ण नज़र अवश्य रखनी चाहिए और जब पर्याप्त काम न हो रहा हो तो सचेत करना चाहिए। अक्सर, प्रतिनिधियों के घर लौटने और अल्पकालिक राजनीतिक गणित के हावी हो जाने के बाद शिखर सम्मेलनों की घोषणाएं हवा में विलीन हो जाती हैं।

Subscribe to PS Digital
PS_Digital_1333x1000_Intro-Offer1

Subscribe to PS Digital

Access every new PS commentary, our entire On Point suite of subscriber-exclusive content – including Longer Reads, Insider Interviews, Big Picture/Big Question, and Say More – and the full PS archive.

Subscribe Now

इस बार बहुत कुछ दांव पर लगा है। इस साल एसडीजी शिखर सम्मेलन और दिसंबर में पेरिस में जलवायु सम्मेलन में लिए जाने वाले फ़ैसले हमारे इस ग्रह के भविष्य पर चिरस्थायी प्रभाव डालेंगे। स्थिर जलवायु, समृद्धि, ग़रीबी घटाने और कानून के शासन के लिए महत्वपूर्ण होती है। यदि विश्व के नेतागण पेरिस में तापमानों में वृद्धि को दो अंश सेल्सियस से कम रखने के लिए विश्वसनीय उपाय अपनाने पर सहमत नहीं होते हैं तो एसडीजी साकार नहीं होंगे।

हमारे पास ग़रीबी कम करने और जलवायु परिवर्तन पर ध्यान देने के बीच चुनाव करने का विकल्प नहीं है, जैसा कि जीवाश्म ईंधन कंपनियां कहती हैं। दरअसल, जलवायु परिवर्तन के खतरनाक प्रभाव विकास के उन लाभों को निष्क्रिय करने का संकेत कर रहे हैं जिन्हें एमडीजी ने हासिल करने में मदद की थी। हम दुनिया को दम घोटू लू, गंभीर सूखों, विनाशकारी बाढ़ों और विध्वंसक दावानलों के जोखिम में डाल रहे हैं। पूरे-पूरे संभागों को खाद्यान्न उत्पादन में भयंकर कमी का सामना करना पड़ सकता है। सागरों का जल स्तर बढ़ सकता है जिससे बड़े शहर और छोटे द्वीप राज्य डूब सकते हैं। बड़ी आबादियां विस्थापित होंगी, जिससे वर्तमान आर्थिक दबाव और सामाजिक तनाव और तीव्र होंगे।

साथ ही साथ, तृणमूल संगठनों और केंद्रीय बैंकों के बीच समान रूप से आम सहमति उभर कर सामने आ रही है कि असमानता दुनिया भर में लोगों की आजीविका और समृद्धि के लिए गंभीर चुनौती खड़ी कर रही है। वैश्वीकरण ने राष्ट्रों, क्षेत्रीय भूखंडों और यहां तक कि महाद्वीपों के भीतर के सामाजिक अनुबंधों को कमज़ोर किया है।

दीवारों का निर्माण, संपत्ति का संचय, और ग़रीब और कमज़ोर लोगों को कलंकित करना असमानता का जवाब नहीं हो सकता। संपोषणीय समृद्धि मांग करती है कि किसी समाज के सभी समूह आर्थिक प्रगति के लाभों की समान रूप से भागीदारी करें  – विशेष रूप से इसलिए कि हमारे समाज उत्तरोत्तर अन्योन्याश्रित होते जा रहे हैं। यही कारण है कि हम एसडीजी के लक्ष्य 10 से विशेष रूप से उत्साहित हैं – देशों के भीतर और उनके बीच की असमानता कम करने और लिंगी समानता पर ध्यान केंद्रित करने की इसकी प्रतिबद्धता को लेकर।

हम जानते हैं कि किसी भी ढांचे या प्रक्रिया की अपनी सीमाएं होंगी। अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन बहुधा इस तरह आयोजित होते हैं कि उनके आयोजन के तरीक़े गूढ़ और समागार से बाहर के लोगों के लिए अलगावकारी होते हैं। 1980 के दशक में संयुक्त राष्ट्र ने क्षतिकारी पर्यावरणी, सामाजिक और आर्थिक रुझानों को लेकर बढ़ती वैश्विक चिंता के समाधान के लिए आज्ञप्ति दी थी जिसे ब्रंटलैंड रिपोर्ट के रूप में जाना जाता है। उस रिपोर्ट में “संपोषणीय विकास” की संकल्पना को परिभाषित किया गया था और आमूल-चूल बदलाव की मांग की गई थी। उसने चेताया था कि जब तक हम “अपने शब्दों को ऐसी भाषा में रूपांतरित नहीं करते हैं जो जवानों से लेकर बूढ़ों तक के दिलो-दिमाग़ तक पहुंच सके तब तक हम विकास की दिशा को सही करने के लिए आवश्यक व्यापक सामाजिक बदलावों का दायित्व संभालने में सक्षम नहीं होंगे।

संपोषणीय प्रगति और विकास की नीतियों को आदेशों के ज़रिए थोपा नहीं जा सकता; उन्हें इस तरह तैयार करने और लागू करने की आवश्यकता है कि सामान्य नागरिकों के दृष्टिकोण और अनुभव सुने जा सकें। एसडीजी के क्रियान्वयन और जलवायु परिवर्तन को कम-से-कम करने के लिए हमें अपने जीवाश्म ईंधन चालित आर्थिक मॉडल में भारी बदलाव लाने होंगे और उनसे विमुख होना होगा।  सार्वजनिक समझ और सहमति महत्वपूर्ण होगी।

दुनिया के नेताओं के पास साहसिक फ़ैसले लेने, उनकी ज़रूरत समझाने और उन्हें न्यायसंगत और प्रभावकारी ढंग से लागू करने का साहस होना ही चाहिए। उन्हें हमारे पड़पोतों-पड़पोतियों को अच्छे भविष्य से वंचित करने का कोई अधिकार नहीं है। अब यह विकल्पों का प्रश्न नहीं रह गया है, बल्कि तबाही को रोकने की मजबूरी बन गया है। अब कार्रवाई का वक्त आ गया है। हमें इस अवसर को काफूर नहीं होने देना चाहिए।

https://prosyn.org/r9lF7Brhi