नई दिल्ली – अप्रैल के अंतिम दिनों में कीर्ति त्रिपाठी नाम की एक 17 साल की लड़की ने प्रतिष्ठित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) में प्रवेश के लिए देश की परीक्षा उत्तीर्ण कर लेने के शीघ्र बाद कोटा, भारत में कूद कर अपनी जान दे दी। एक सप्ताह बाद, कोटा की एक और छात्रा, प्रीति सिंह ने खुद को फांसी पर लटका दिया, और कुछ दिनों के बाद चोटों के चलते उसकी मृत्यु हो गई। सिंह का कोटा में अकेले इस वर्ष के दौरान किसी छात्र द्वारा आत्महत्या करने का नौवां मामला था, और पिछले पांच साल में यह 56वां मामला था। इन सभी ने कोटा की "कोचिंग संस्थाओं" में अध्ययन किया था, जिनका एकमात्र उद्देश्य हाई स्कूल के छात्रों को आईआईटी की संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) के लिए तैयार करना है।
पांच पृष्ठ के सुसाइड नोट में त्रिपाठी ने इस बात पर निराशा व्यक्त की कि उसे इंजीनियरिंग का अध्ययन करने के लिए मजबूर किया गया था, जबकि उसकी वास्तविक महत्वाकांक्षा नासा वैज्ञानिक बनने की थी। उसने उस दबाव का भी वर्णन किया जिसका उसे कोचिंग संस्था में सामना करना पड़ा था। त्रिपाठी ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय से विनती की कि ऐसी संस्थाओं को बंद कर दिया जाना चाहिए जो अपने छात्रों को असहनीय तनाव और अवसाद सहने के लिए मजबूर करती हैं। यह कहानी बिल्कुल आम है, लेकिन क्या दोष वास्तव में कोचिंग संस्थाओं पर मढ़ा जाना चाहिए?
वास्तव में, कोटा की कोचिंग संस्थाएं किसी बड़ी समस्या का लक्षण हैं, जिसका संकेत शहर के वरिष्ठ प्रशासक, जिला कलेक्टर रवि कुमार सुरपुर ने हाल ही में हुई इन मौतों की प्रतिक्रिया में लिखे एक भावनात्मक पत्र में किया है। बच्चों के माता-पिता को सीधे संबोधित करते हुए, सुरपुर ने उनसे अनुरोध किया है कि वे अपने बच्चों के ज़रिए परोक्ष रूप से अपनी इच्छाओं को फलीभूत करने के प्रयास में उनको अत्यधिक तनाव में न रखें।
नई दिल्ली – अप्रैल के अंतिम दिनों में कीर्ति त्रिपाठी नाम की एक 17 साल की लड़की ने प्रतिष्ठित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) में प्रवेश के लिए देश की परीक्षा उत्तीर्ण कर लेने के शीघ्र बाद कोटा, भारत में कूद कर अपनी जान दे दी। एक सप्ताह बाद, कोटा की एक और छात्रा, प्रीति सिंह ने खुद को फांसी पर लटका दिया, और कुछ दिनों के बाद चोटों के चलते उसकी मृत्यु हो गई। सिंह का कोटा में अकेले इस वर्ष के दौरान किसी छात्र द्वारा आत्महत्या करने का नौवां मामला था, और पिछले पांच साल में यह 56वां मामला था। इन सभी ने कोटा की "कोचिंग संस्थाओं" में अध्ययन किया था, जिनका एकमात्र उद्देश्य हाई स्कूल के छात्रों को आईआईटी की संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) के लिए तैयार करना है।
पांच पृष्ठ के सुसाइड नोट में त्रिपाठी ने इस बात पर निराशा व्यक्त की कि उसे इंजीनियरिंग का अध्ययन करने के लिए मजबूर किया गया था, जबकि उसकी वास्तविक महत्वाकांक्षा नासा वैज्ञानिक बनने की थी। उसने उस दबाव का भी वर्णन किया जिसका उसे कोचिंग संस्था में सामना करना पड़ा था। त्रिपाठी ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय से विनती की कि ऐसी संस्थाओं को बंद कर दिया जाना चाहिए जो अपने छात्रों को असहनीय तनाव और अवसाद सहने के लिए मजबूर करती हैं। यह कहानी बिल्कुल आम है, लेकिन क्या दोष वास्तव में कोचिंग संस्थाओं पर मढ़ा जाना चाहिए?
वास्तव में, कोटा की कोचिंग संस्थाएं किसी बड़ी समस्या का लक्षण हैं, जिसका संकेत शहर के वरिष्ठ प्रशासक, जिला कलेक्टर रवि कुमार सुरपुर ने हाल ही में हुई इन मौतों की प्रतिक्रिया में लिखे एक भावनात्मक पत्र में किया है। बच्चों के माता-पिता को सीधे संबोधित करते हुए, सुरपुर ने उनसे अनुरोध किया है कि वे अपने बच्चों के ज़रिए परोक्ष रूप से अपनी इच्छाओं को फलीभूत करने के प्रयास में उनको अत्यधिक तनाव में न रखें।