तिराना. गरीब देश कच्चे माल यथा कोको, लौह अयस्क और कच्चे हीरों का निर्यात करते हैं. अमीर देश अकसर उन्हीं गरीब देशों को अधिक जटिल उत्पादों जैसे कि चॉकलेट, कार और आभूषणों का निर्यात करते हैं. यदि गरीब देशों को अमीर बनना है तो उन्हें अपने संसाधनों का कच्चे माल के रूप में निर्यात रोकना होगा और उनके मूल्य संवर्द्घन पर ध्यान केंद्रित करना होगा. अन्यथा अमीर देश मूल्य और सभी अच्छी नौकरियों के बड़े भाग को यूं ही हड़पते रहेंगे.
गरीब देश इस बाबत दक्षिण अफ्रीका और बोत्सवाना का अनुसरण कर सकते हैं तथा अपनी प्राकृतिक संपदा का कच्ची अवस्था में निर्यात को सीमित कर उसका अपने यहां औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने में इस्तेमाल कर सकते हैं. इस नीति को स्थानीय स्तर पर ‘‘लाभीकरण’’ के नाम से जाना जाता है. पर क्या वे ऐसा कर पाएंगे?
कुछ विचार गलत होने से ज्यादा बुरे होते हैंः वे वंध्याकारी होते हैं क्योंकि वे दुनिया को उस नजरिये से देखते हैं जिसमें कम अहम मसलों पर जोर होता हैं - बोलें तो कच्चे माल की उपलब्धता - और समाज को उन संभावित अवसरों की चकाचौंध में अंधा कर देते हैं जो दरअसल कहीं और मौजूद हैं.
तिराना. गरीब देश कच्चे माल यथा कोको, लौह अयस्क और कच्चे हीरों का निर्यात करते हैं. अमीर देश अकसर उन्हीं गरीब देशों को अधिक जटिल उत्पादों जैसे कि चॉकलेट, कार और आभूषणों का निर्यात करते हैं. यदि गरीब देशों को अमीर बनना है तो उन्हें अपने संसाधनों का कच्चे माल के रूप में निर्यात रोकना होगा और उनके मूल्य संवर्द्घन पर ध्यान केंद्रित करना होगा. अन्यथा अमीर देश मूल्य और सभी अच्छी नौकरियों के बड़े भाग को यूं ही हड़पते रहेंगे.
गरीब देश इस बाबत दक्षिण अफ्रीका और बोत्सवाना का अनुसरण कर सकते हैं तथा अपनी प्राकृतिक संपदा का कच्ची अवस्था में निर्यात को सीमित कर उसका अपने यहां औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने में इस्तेमाल कर सकते हैं. इस नीति को स्थानीय स्तर पर ‘‘लाभीकरण’’ के नाम से जाना जाता है. पर क्या वे ऐसा कर पाएंगे?
कुछ विचार गलत होने से ज्यादा बुरे होते हैंः वे वंध्याकारी होते हैं क्योंकि वे दुनिया को उस नजरिये से देखते हैं जिसमें कम अहम मसलों पर जोर होता हैं - बोलें तो कच्चे माल की उपलब्धता - और समाज को उन संभावित अवसरों की चकाचौंध में अंधा कर देते हैं जो दरअसल कहीं और मौजूद हैं.