नैरोबी - अफ्रीकी देशों की अक्सर आलोचना की जाती है कि वे पर्यावरण की चुनौतियों का सामना नहीं कर पाते. प्रेक्षक अक्सर इस बात की चर्चा करते हैं कि जनसंख्या में वृद्धि, भूमि के क्षरण और औद्योगिकीकरण की वजह से वन्यजीवन की हानि होती है। इनका सबसे बड़ा आरोप यही होता है कि अवैध शिकार की वारदातें बढ़ते जाने से हाथी और गैंडे जैसी प्रजातियाँ दुर्लभ होती जा रही हैं।
तथापि, केन्या में एक नवोन्मेषी और व्यापक संरक्षण परियोजना चल रही है। इसकी शुरूआत मध्यवर्ती केन्या के एबेरडेयर पर्वतों से हुई। “राइनो आर्क” नाम से शुरू की गई इस परियोजना का लक्ष्य मूलतः अवैध शिकारियों के कहर से अत्यंत दुर्लभ काले गैंडों को संरक्षण प्रदान करना था। इस परियोजना के समर्थन में वे सब लोग खड़े हो गए, जिनसे आशंका थी कि वे इसका विरोध करेंगे। इसमें खास तौर पर देश के कुछ सर्वाधिक ऊपजाऊ कृषि क्षेत्रों के स्थानीय लोग थे।
सन् 1988 में संरक्षणकर्ताओं ने छोटी-छोटी जोत वाले खेतों से घिरे एबेरडेयर राष्ट्रीय पार्क को बचाने के लिए बिजली के करंट वाली बाड़ के लिए धन जुटाने और उसका निर्माण करने का निश्चय किया। ऐसी बाड़ के निर्माण का मकसद इस पार्क में लोगों की घुसपैठ और पार्क के वन्यजीवन के क्षरण को रोकना था। लेकिन इससे उन किसानों को भी संरक्षण मिला जिनकी फसल आवारा हाथी और दूसरे वन्यजीव हमेशा बर्बाद कर देते थे। स्थानीय किसानों ने इस पहल का स्वागत किया, जिससे प्रेरित होकर पूरी एबेरडेयर पर्वत शृंखला की परिधि को बाड़ से घेरने के निर्णय को बल मिला।
2,000 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई एबेरडेयर पर्वतमालाएँ, स्थानीय वनक्षेत्र, महत्वपूर्ण जलागम क्षेत्र और राष्ट्रीय पार्क केन्या के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। इस देश की चार बड़ी नदियों का उद्गम स्थल यहाँ पर है जो उत्तर, पश्चिम, पूर्व और दक्षिण की ओर बहती हैं, ये नदियाँ राजधानी नैरोबी सहित देश के सात बड़े शहरों को जल और बिजली प्रदान करती हैं। पर्वतमाला की तलहटी में चालीस लाख किसानों को उर्वर भूमि और अच्छी वर्षा का लाभ मिलता है। तलहटियों और ऊँची ढलानों पर केन्या की 30 प्रतिशत चाय और 70 प्रतिशत कॉफी का उत्पादन होता है।
लगातार 21 सालों तक एबेरडेयर पर्वत शृंखला के चारों ओर बहुत मेहनत से जो बाड़ लगाई गई है उसे बनाने में खास तौर पर केन्या के कॉर्पोरेट क्षेत्र, निजी दानकर्ताओं और नए-नए ढंग से धनराशि जुटाने वालों का बहुत सहयोग मिला है। गैंडा-शुल्क और ऑफ़ रोड मोटर ईवेंट जैसे कार्यक्रमों की अनूठी कल्पनाओं से आम लोग बहुत प्रभावित हुए। इनसे सालाना $1 मिलियन से अधिक की आय प्राप्त होती है। सन् 2009 में जब तक बिजली के करंट वाली तार की बाड़ बनाने का काम पूरा हुआ था तब तक उस समय की सरकार के तत्कालीन राष्ट्रपति मवाई किबाकी इस परियोजना के मूल भागीदार बन चुके थे और केन्या वन्यजीव सेवा (केडब्ल्यूएस) और केन्या वन्य सेवा (केएफएस) भी इस परियोजना से पूरी तरह से जुड़ चुके थे।
केन्या की सरकार के सहयोग से राइनो आर्क ने उन दूसरे वन्य क्षेत्रों की ओर भी ध्यान देना शुरू किया है जो निम्न श्रेणी के हैं - जैसे माउ वनांचल में नायवाशा झील से दिखने वाले माउंट एबुरु और विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यताप्राप्त माउंट केन्या, जो मानव और वन्य जीव-जंतुओं के संघर्षों से बुरी तरह प्रभावित है। एबुरु पर्वत की 45 किलोमीटर की बाड़ का काम गत वर्ष ही पूरा हुआ है। माउंट केन्या की 450 किलोमीटर लंबी बाड़ एबेरडेयर परियोजना से भी लंबी होगी, और यह कार्य तेज़ गति से हो रहा है जिसमें अब तक 80 किलोमीटर बाड़ लगाने का काम पूरा हो चुका है।
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निश्चय ही, बाड़ लगाना तो बस इस काम की शुरूआत है। बाड़ों का प्रबंध और रखरखाव (उदाहरण के तौर पर एबेरडेयर की मूल बाड़ के कुछ खंभों को बदलना पड़ा था) करना होता है तथा वन्य जीवों के गलियारों का विकास करना होता है, और स्थानीय लोगों को सहयोग की आवश्यकता होती है। बाड़ के सभी क्षेत्रों पर हवाई तथा पैदल निगरानी की जाती है, यह लगातार निगरानी की प्रक्रिया है जिस पर बहुत अधिक लागत आती है।
तथापि, इससे होने वाले लाभ काफी महत्वपूर्ण हैं। ये बाड़ें खास तौर पर अधिकारियों को हाथी, गैंडा और बोंगो ऐंटीलोप जैसी उन तमाम दुर्लभ प्रजातियों के अवैध शिकार की वारदातों से भी पूरी तरह सतर्क रखती हैं, जो अब केवल एबेरडेयर, माउंट केन्या, और माउंट एबुरु सहित माउ वनांचल में ही पाई जाती हैं।
स्थानीय समुदायों को बाड़ और वनों के रख-रखाव के सभी कामों में शामिल किया जाता है। वस्तुतः वे ही इन बाड़ों के संरक्षक हैं, वे उनके आसपास खर-पतवार की सफाई करते हैं और वन्य जीवों या अन्य कारणों से होने वाली क्षति की मरम्मत के काम को देखते हैं - इस प्रक्रिया में वे नए-नए कौशल भी सीखने लगे हैं।
दीर्घगामी लक्ष्य इन विकट वनों की निरंतर सुरक्षा करना है। इसके लिए निजी-सार्वजनिक भागीदारी के अंतर्गत राइनो आर्क, केडब्ल्यूएस और केएफएस, और स्थानीय समुदायों के प्रतिनिधियों के संयुक्त तत्वावधान में धर्मादा निधियाँ स्थापित की जा रही हैं। इन निधियों का प्रबंध स्थानीय तौर पर स्थापित तथाकथित न्यास निधियों के ज़रिए होगा, जो बाड़ के रखरखाव पर खर्च किया जाएगा। एबेरडेयर न्यास निधि पिछले वर्ष अक्तूबर में लागू हुई।
इस क्षेत्र के परिश्रमी किसानों को अब बाड़ के साथ जीवन बिताने के कारण उससे मिलनेवाले लाभ भी दिखाई देने लगे हैं। एबेरडेयर बाड़ का काम पूरा हो जाने के बाद स्थानीय किसानों की ज़मीन की कीमत चार गुना बढ़ गई है। पिछली एक सदी में पहली बार वे अपने खेतों पर शांति से काम कर पा रहे हैं, उनके बच्चे अब वन्य जीवों के हमलों के डर के बिना स्कूल जा-आ सकते हैं, और संरक्षण अब उनके पाठ्यक्रम का हिस्सा बन गया है। इससे मिली सीख एकदम साफ़ है - अच्छी बाड़ों से सभी का भला होता है।
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Germany recently prohibited a Palestinian Congress from taking place in Berlin, arrested its Jewish supporters, and barred one of its organizers, Greece’s former finance minister, from entering the country. But the turn to repression is powerful evidence that the country’s pro-Israel political consensus is breaking down.
sees in his case an effort to enforce with repression a pro-Israel political consensus that is breaking down.
Alison L. LaCroix
explains why “originalist” methods of constitutional interpretation are deeply ahistorical, describes the zero-sum relationship between state and federal power in modern America, identifies possible historical analogues for the upcoming US presidential election, and more.
नैरोबी - अफ्रीकी देशों की अक्सर आलोचना की जाती है कि वे पर्यावरण की चुनौतियों का सामना नहीं कर पाते. प्रेक्षक अक्सर इस बात की चर्चा करते हैं कि जनसंख्या में वृद्धि, भूमि के क्षरण और औद्योगिकीकरण की वजह से वन्यजीवन की हानि होती है। इनका सबसे बड़ा आरोप यही होता है कि अवैध शिकार की वारदातें बढ़ते जाने से हाथी और गैंडे जैसी प्रजातियाँ दुर्लभ होती जा रही हैं।
तथापि, केन्या में एक नवोन्मेषी और व्यापक संरक्षण परियोजना चल रही है। इसकी शुरूआत मध्यवर्ती केन्या के एबेरडेयर पर्वतों से हुई। “राइनो आर्क” नाम से शुरू की गई इस परियोजना का लक्ष्य मूलतः अवैध शिकारियों के कहर से अत्यंत दुर्लभ काले गैंडों को संरक्षण प्रदान करना था। इस परियोजना के समर्थन में वे सब लोग खड़े हो गए, जिनसे आशंका थी कि वे इसका विरोध करेंगे। इसमें खास तौर पर देश के कुछ सर्वाधिक ऊपजाऊ कृषि क्षेत्रों के स्थानीय लोग थे।
सन् 1988 में संरक्षणकर्ताओं ने छोटी-छोटी जोत वाले खेतों से घिरे एबेरडेयर राष्ट्रीय पार्क को बचाने के लिए बिजली के करंट वाली बाड़ के लिए धन जुटाने और उसका निर्माण करने का निश्चय किया। ऐसी बाड़ के निर्माण का मकसद इस पार्क में लोगों की घुसपैठ और पार्क के वन्यजीवन के क्षरण को रोकना था। लेकिन इससे उन किसानों को भी संरक्षण मिला जिनकी फसल आवारा हाथी और दूसरे वन्यजीव हमेशा बर्बाद कर देते थे। स्थानीय किसानों ने इस पहल का स्वागत किया, जिससे प्रेरित होकर पूरी एबेरडेयर पर्वत शृंखला की परिधि को बाड़ से घेरने के निर्णय को बल मिला।
2,000 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई एबेरडेयर पर्वतमालाएँ, स्थानीय वनक्षेत्र, महत्वपूर्ण जलागम क्षेत्र और राष्ट्रीय पार्क केन्या के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। इस देश की चार बड़ी नदियों का उद्गम स्थल यहाँ पर है जो उत्तर, पश्चिम, पूर्व और दक्षिण की ओर बहती हैं, ये नदियाँ राजधानी नैरोबी सहित देश के सात बड़े शहरों को जल और बिजली प्रदान करती हैं। पर्वतमाला की तलहटी में चालीस लाख किसानों को उर्वर भूमि और अच्छी वर्षा का लाभ मिलता है। तलहटियों और ऊँची ढलानों पर केन्या की 30 प्रतिशत चाय और 70 प्रतिशत कॉफी का उत्पादन होता है।
लगातार 21 सालों तक एबेरडेयर पर्वत शृंखला के चारों ओर बहुत मेहनत से जो बाड़ लगाई गई है उसे बनाने में खास तौर पर केन्या के कॉर्पोरेट क्षेत्र, निजी दानकर्ताओं और नए-नए ढंग से धनराशि जुटाने वालों का बहुत सहयोग मिला है। गैंडा-शुल्क और ऑफ़ रोड मोटर ईवेंट जैसे कार्यक्रमों की अनूठी कल्पनाओं से आम लोग बहुत प्रभावित हुए। इनसे सालाना $1 मिलियन से अधिक की आय प्राप्त होती है। सन् 2009 में जब तक बिजली के करंट वाली तार की बाड़ बनाने का काम पूरा हुआ था तब तक उस समय की सरकार के तत्कालीन राष्ट्रपति मवाई किबाकी इस परियोजना के मूल भागीदार बन चुके थे और केन्या वन्यजीव सेवा (केडब्ल्यूएस) और केन्या वन्य सेवा (केएफएस) भी इस परियोजना से पूरी तरह से जुड़ चुके थे।
केन्या की सरकार के सहयोग से राइनो आर्क ने उन दूसरे वन्य क्षेत्रों की ओर भी ध्यान देना शुरू किया है जो निम्न श्रेणी के हैं - जैसे माउ वनांचल में नायवाशा झील से दिखने वाले माउंट एबुरु और विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यताप्राप्त माउंट केन्या, जो मानव और वन्य जीव-जंतुओं के संघर्षों से बुरी तरह प्रभावित है। एबुरु पर्वत की 45 किलोमीटर की बाड़ का काम गत वर्ष ही पूरा हुआ है। माउंट केन्या की 450 किलोमीटर लंबी बाड़ एबेरडेयर परियोजना से भी लंबी होगी, और यह कार्य तेज़ गति से हो रहा है जिसमें अब तक 80 किलोमीटर बाड़ लगाने का काम पूरा हो चुका है।
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तथापि, इससे होने वाले लाभ काफी महत्वपूर्ण हैं। ये बाड़ें खास तौर पर अधिकारियों को हाथी, गैंडा और बोंगो ऐंटीलोप जैसी उन तमाम दुर्लभ प्रजातियों के अवैध शिकार की वारदातों से भी पूरी तरह सतर्क रखती हैं, जो अब केवल एबेरडेयर, माउंट केन्या, और माउंट एबुरु सहित माउ वनांचल में ही पाई जाती हैं।
स्थानीय समुदायों को बाड़ और वनों के रख-रखाव के सभी कामों में शामिल किया जाता है। वस्तुतः वे ही इन बाड़ों के संरक्षक हैं, वे उनके आसपास खर-पतवार की सफाई करते हैं और वन्य जीवों या अन्य कारणों से होने वाली क्षति की मरम्मत के काम को देखते हैं - इस प्रक्रिया में वे नए-नए कौशल भी सीखने लगे हैं।
दीर्घगामी लक्ष्य इन विकट वनों की निरंतर सुरक्षा करना है। इसके लिए निजी-सार्वजनिक भागीदारी के अंतर्गत राइनो आर्क, केडब्ल्यूएस और केएफएस, और स्थानीय समुदायों के प्रतिनिधियों के संयुक्त तत्वावधान में धर्मादा निधियाँ स्थापित की जा रही हैं। इन निधियों का प्रबंध स्थानीय तौर पर स्थापित तथाकथित न्यास निधियों के ज़रिए होगा, जो बाड़ के रखरखाव पर खर्च किया जाएगा। एबेरडेयर न्यास निधि पिछले वर्ष अक्तूबर में लागू हुई।
इस क्षेत्र के परिश्रमी किसानों को अब बाड़ के साथ जीवन बिताने के कारण उससे मिलनेवाले लाभ भी दिखाई देने लगे हैं। एबेरडेयर बाड़ का काम पूरा हो जाने के बाद स्थानीय किसानों की ज़मीन की कीमत चार गुना बढ़ गई है। पिछली एक सदी में पहली बार वे अपने खेतों पर शांति से काम कर पा रहे हैं, उनके बच्चे अब वन्य जीवों के हमलों के डर के बिना स्कूल जा-आ सकते हैं, और संरक्षण अब उनके पाठ्यक्रम का हिस्सा बन गया है। इससे मिली सीख एकदम साफ़ है - अच्छी बाड़ों से सभी का भला होता है।