गरीबी से सशक्तीकरण तक

मुंबई – अगले महीने भारत जब आम चुनावों की तैयारी में जुटने लगेगा, तो उसके लिए इस अवसर पर खुश होने का मौका है: बेहद गरीबी आखिरकार कम होने लगी है। वर्ष 2012 में – अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने की दृष्टि से सरकार द्वारा विभिन्न आर्थिक सुधारों को शुरू किए जाने के दो दशक बाद – आधिकारिक गरीबी दर घटकर 22% हो गई थी, जो 1994 की दर की तुलना में आधी से भी कम थी। लेकिन अब भारत के लिए अपनी उम्मीदों को बढ़ाने का समय आ गया है। यद्यपि घोर गरीबी से बचना एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, पर यह जीवनयापन का अच्छा स्तर और आर्थिक सुरक्षा की भावना प्राप्त करने जैसा नहीं है। इस उद्देश्य से, अभी बहुत कुछ करना बाकी है।

वास्तव में, इस कार्य की सीमा मैकिन्सी ग्लोबल इन्स्टीट्यूट की एक नई रिपोर्ट, “गरीबी से सशक्तीकरण तक,” में परिलक्षित होती है जिसमें आठ मौलिक आवश्यकताओं: भोजन, ऊर्जा, आवास, पेय जल, स्वच्छता, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा को पूरा करने के लिए औसत नागरिक पर पड़ने वाली लागत का अनुमान लगाने के लिए “सशक्तीकरण रेखा” नामक एक नवोन्मेषी विश्लेषणात्मक ढाँचे का उपयोग किया गया है। इस मीट्रिक के अनुसार, वर्ष 2012 में 56% भारतीयों के पास “मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए साधन नहीं थे।”

महत्वपूर्ण बात यह है कि यह संख्या भारत में अभी तक गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले लोगों की संख्या से 2.5 गुना से भी अधिक है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि “सशक्तीकरण अंतराल” – अर्थात, इन 680 मिलियन लोगों को सशक्तीकरण रेखा तक लाने के लिए आवश्यक अतिरिक्त खपत – अत्यधिक गरीबी को दूर करने की लागत से सात गुना अधिक है।

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