आज, अपने 36-साल के गृह युद्ध के अंत के आधा-दशक बाद, श्रीलंका के लिए यह एक महत्वपूर्ण अवसर है कि वह अपने खुद के प्रयासों से शांति स्थापित करे और इसके दीर्घकालिक लाभों को प्राप्त करे । नव-निर्वाचित राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेना, और प्रधानमंत्री के रूप में, मैं उस शांति को हासिल करने, और अपने देश को वैसा बनने में मदद करने के लिए कटिबद्ध हैं जैसा उसे हमेशा होना चाहिए था: लोकतंत्र, सभ्यता, और मुक्त समाज का समृद्ध एशियाई द्वीप।
असफल शांति के जोखिम अब प्रकट हो रहे हैं, क्योंकि, 2009 से, जब तमिल टाइगर्स के साथ युद्ध, हिंसा के बड़े सैलाब में समाप्त हुआ था, तो राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के नेतृत्व वाली पूर्व सरकार ने हमारे तमिल नागरिकों के साथ सुलह के बारे में केवल अधूरे मन से ही कोशिशें की थीं। युद्ध से तबाह हुए तमिल ज़िलों, और साथ ही सालों की लड़ाई और आतंकवाद से क्षतिग्रस्त हमारे समाज के अन्य भागों का पुनर्निर्माण, मुश्किल से शुरू ही हुआ है।
यह उपेक्षा राजपक्षे की जानीबूझी रणनीति का हिस्सा थी, जिन्हें श्रीलंका को लगभग युद्ध की स्थिति में, और हमारे तमिल नागरिकों को व्यथित और अलग-थलग रखने में, अपना कठोर शासन बनाए रखने का सबसे प्रभावी तरीका दिखाई देता था। हालाँकि उनकी फूट डालो राज करो की रणनीति कुछ समय तक तो सफल हुई, जिसमें उन्हें अभूतपूर्व मात्रा में सत्ता को अपने हाथों में केंद्रित करने का मौका मिला, लेकिन उससे हमारे सामाजिक विभाजनों और सतत दरिद्रता की सच्चाई नहीं छिप सकी। इसलिए, पिछली जनवरी में हुए राष्ट्रपति के चुनाव में, सिरिसेना ने सभी धर्मों और जातियों के श्रीलंकाइयों के गठबंधन की विजय के साथ दुनिया को दंग कर दिया जो अपने लोकतंत्र का पुनर्निर्माण करना चाहते हैं, दमनशील शासन की राह पर नहीं चलना चाहते।
सिरिसेना की जीत के बाद के महीनों में, श्रीलंका का लोकतंत्र पुनर्जीवित हो गया है, और स्थायी घरेलू शांति की स्थापना के लिए कठोर प्रयास शुरू हो गए हैं। हम जल्दी ही संसदीय चुनाव आयोजित करने की योजना बना रहे हैं, जो निर्धारित समय से एक साल पहले होगा, ताकि राजपक्षे की गूंज वाले चैम्बर को पूरी तरह कार्य करनेवाली विधानसभा में बदल दिया जाए, ऐसी विधानसभा जो सरकार को उत्तरदायी बनाए।
इसके अलावा, राष्ट्रपति की सत्ता का इस्तेमाल अब क़ानून द्वारा स्थापित सीमाओं के भीतर किया जाता है, न कि किसी एक व्यक्ति की सनक के अनुसार। हमारे न्यायाधीशों को अब भय नहीं लगता। हमारे व्यापार जगत के अग्रणियों को अब राष्ट्रपति के लालची परिवार के सदस्यों और उनके संगी-साथियों द्वारा तलाशी और अधिग्रहण का डर नहीं सताता है।
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अपने सभी नागरिकों को डर से आज़ाद कर लेने पर, हम श्रीलंका का मुक्त समाज के रूप में पुनर्निर्माण कर लेंगे। राजपक्षे ने हमारे देश में जिस तरह के दमनशील पूँजीवाद का मॉडल पेश किया था, उसे ज़्यादातर दुनिया आजकल अपनाती हुई प्रतीत हो रही है, पर वह हमारे लिए नहीं है।
बेशक, हमारे कुछ पड़ोसी हमारी अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए अलग तरह का रास्ता अपनाने, और राजनीतिक स्वतंत्रता को फिर से स्थापित करने के बारे में बहुत ज़्यादा चिंता न करने की सलाह दे रहे हैं। तथापि, दमनशील शासन के साथ हमारा अनुभव यह रहा है कि यह समाज को कृत्रिम रूप से विभाजित किए रखने की अपनी ज़रूरतों के कारण संघर्ष के बाद सुलह और पुनर्निर्माण के लक्ष्य को नज़रअंदाज़ करता है। फिर से संघर्ष और मनमाने शासन में जाने से बचने के लिए सबसे अच्छा तरीका यह सुनिश्चित करना है कि श्रीलंका के नेताओं के प्रतिनिधियों को संस्थाओं के माध्यम से उत्तरदायी बनाया जाए।
लेकिन हम दमनशील शासन के पृष्ठ को पूरी तरह नहीं उलट सकते, लोकतांत्रिक स्वतंत्रता की पूरी श्रेणी को बहाल नहीं कर सकते, और अपने दम पर समावेशी तरीके से अपनी अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण नहीं कर सकते। हमारे देश की बहुत ज़्यादा संपदा युद्ध से नष्ट हो गई है, विदेशों में चली गई है, या भ्रष्टाचार के माध्यम से निकाल ली गई है। हमारे पास बस सहायता के बिना पुनर्निर्माण का महान कार्य शुरू करने के लिए संसाधनों की कमी है।
इसलिए हमारी ज़रूरत है कि दुनिया के लोकतंत्र हमारे साथ खड़े हों और हमारा समर्थन करें, ताकि हमारे लोग हतोत्साहित न हो जाएँ और उन निरंकुश ताकतों के भुलावे में न आ जाएँ जो आने वाले संसदीय चुनाव में सत्ता में वापस आने के लिए मैदान में डटकर इंतजार कर रही हैं। हम अपने लोगों के सामने यह प्रदर्शित करना चाहते हैं कि दीर्घकालीन शांति और साझा समृद्धि के लिए सुलह, लोकतंत्र, सहिष्णुता, और क़ानून का शासन ही अकेला रास्ता है। अफ़सोस की बात है कि अब तक हमें जो मदद मिली है वह मेरी सरकार को हमारे देश के पुनर्निर्माण और दुनिया में हमारी रणनीतिक स्थिति पुनः स्थापित करने में सक्षम हो सकने की दृष्टि से बहुत कम है।
फिर भी, आशा के लिए कारण मौजूद है। हालाँकि हमारी राजनीतिक संस्थाओं में आमूलचूल परिवर्तन की ज़रूरत है, लेकिन मुझे यह कहते हुए गर्व है कि उन्हें भ्रष्ट और खोखला करने के लिए राजपक्षे के भरपूर प्रयासों के बावजूद, हमारी जीत इसलिए संभव हुई कि चुनाव आयोग और अदालत के कर्मियों ने क़ानून का पालन किया। यह बात भी उतनी ही महत्वपूर्ण है कि जब वोटों की गिनती हुई, तो श्रीलंका के सैन्य नेताओं ने अपनी शपथ का पालन किया और राजपक्षे के चुनाव रद्द करने और उसे सत्ता में बनाए रखने के असंवैधानिक आदेश को बहादुरी से अस्वीकार कर किया।
नागरिक वीरता के ये कार्य वह मज़बूत आधार देते हैं जिस पर श्रीलंका के राज्य और समाज का पुनर्निर्माण हो सकेगा। दुनिया की मदद से, हम बिल्कुल ऐसा ही करेंगे।
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Iran’s mass ballistic missile and drone attack on Israel last week raised anew the specter of a widening Middle East war that draws in Iran and its proxies, as well as Western countries like the United States. The urgent need to defuse tensions – starting by ending Israel’s war in Gaza and pursuing a lasting political solution to the Israeli-Palestinian conflict – is obvious, but can it be done?
The most successful development stories almost always involve major shifts in the sources of economic growth, which in turn allow economies to reinvent themselves out of necessity or by design. In China, the interplay of mounting external pressures, lagging household consumption, and falling productivity will increasingly shape China’s policy choices in the years ahead.
explains why the Chinese authorities should switch to a consumption- and productivity-led growth model.
Designing a progressive anti-violence strategy that delivers the safety for which a huge share of Latin Americans crave is perhaps the most difficult challenge facing many of the region’s governments. But it is also the most important.
urge the region’s progressives to start treating security as an essential component of social protection.
कोलंबो - ऐसे युद्ध या क्रांति को जीतना, जिसका परिणाम केवल बाद की शांति खोना हो, हमारे समय की गंभीर राजनीतिक सच्चाइयों में से एक है। इराक में, सद्दाम हुसैन के शासन पर तुरंत सैन्य विजय ने जल्दी ही विद्रोह, गृह युद्ध, और हिंसक इस्लामी राज्य के उभरने का मार्ग प्रशस्त किया। लीबिया, सीरिया, यमन, और दूसरी जगहों पर, अरब स्प्रिंग द्वारा पैदा की गई उम्मीदें इसी तरह अक्सर-हिंसक बनने वाली निराशा में बदल गईं।
आज, अपने 36-साल के गृह युद्ध के अंत के आधा-दशक बाद, श्रीलंका के लिए यह एक महत्वपूर्ण अवसर है कि वह अपने खुद के प्रयासों से शांति स्थापित करे और इसके दीर्घकालिक लाभों को प्राप्त करे । नव-निर्वाचित राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेना, और प्रधानमंत्री के रूप में, मैं उस शांति को हासिल करने, और अपने देश को वैसा बनने में मदद करने के लिए कटिबद्ध हैं जैसा उसे हमेशा होना चाहिए था: लोकतंत्र, सभ्यता, और मुक्त समाज का समृद्ध एशियाई द्वीप।
असफल शांति के जोखिम अब प्रकट हो रहे हैं, क्योंकि, 2009 से, जब तमिल टाइगर्स के साथ युद्ध, हिंसा के बड़े सैलाब में समाप्त हुआ था, तो राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के नेतृत्व वाली पूर्व सरकार ने हमारे तमिल नागरिकों के साथ सुलह के बारे में केवल अधूरे मन से ही कोशिशें की थीं। युद्ध से तबाह हुए तमिल ज़िलों, और साथ ही सालों की लड़ाई और आतंकवाद से क्षतिग्रस्त हमारे समाज के अन्य भागों का पुनर्निर्माण, मुश्किल से शुरू ही हुआ है।
यह उपेक्षा राजपक्षे की जानीबूझी रणनीति का हिस्सा थी, जिन्हें श्रीलंका को लगभग युद्ध की स्थिति में, और हमारे तमिल नागरिकों को व्यथित और अलग-थलग रखने में, अपना कठोर शासन बनाए रखने का सबसे प्रभावी तरीका दिखाई देता था। हालाँकि उनकी फूट डालो राज करो की रणनीति कुछ समय तक तो सफल हुई, जिसमें उन्हें अभूतपूर्व मात्रा में सत्ता को अपने हाथों में केंद्रित करने का मौका मिला, लेकिन उससे हमारे सामाजिक विभाजनों और सतत दरिद्रता की सच्चाई नहीं छिप सकी। इसलिए, पिछली जनवरी में हुए राष्ट्रपति के चुनाव में, सिरिसेना ने सभी धर्मों और जातियों के श्रीलंकाइयों के गठबंधन की विजय के साथ दुनिया को दंग कर दिया जो अपने लोकतंत्र का पुनर्निर्माण करना चाहते हैं, दमनशील शासन की राह पर नहीं चलना चाहते।
सिरिसेना की जीत के बाद के महीनों में, श्रीलंका का लोकतंत्र पुनर्जीवित हो गया है, और स्थायी घरेलू शांति की स्थापना के लिए कठोर प्रयास शुरू हो गए हैं। हम जल्दी ही संसदीय चुनाव आयोजित करने की योजना बना रहे हैं, जो निर्धारित समय से एक साल पहले होगा, ताकि राजपक्षे की गूंज वाले चैम्बर को पूरी तरह कार्य करनेवाली विधानसभा में बदल दिया जाए, ऐसी विधानसभा जो सरकार को उत्तरदायी बनाए।
इसके अलावा, राष्ट्रपति की सत्ता का इस्तेमाल अब क़ानून द्वारा स्थापित सीमाओं के भीतर किया जाता है, न कि किसी एक व्यक्ति की सनक के अनुसार। हमारे न्यायाधीशों को अब भय नहीं लगता। हमारे व्यापार जगत के अग्रणियों को अब राष्ट्रपति के लालची परिवार के सदस्यों और उनके संगी-साथियों द्वारा तलाशी और अधिग्रहण का डर नहीं सताता है।
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बेशक, हमारे कुछ पड़ोसी हमारी अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए अलग तरह का रास्ता अपनाने, और राजनीतिक स्वतंत्रता को फिर से स्थापित करने के बारे में बहुत ज़्यादा चिंता न करने की सलाह दे रहे हैं। तथापि, दमनशील शासन के साथ हमारा अनुभव यह रहा है कि यह समाज को कृत्रिम रूप से विभाजित किए रखने की अपनी ज़रूरतों के कारण संघर्ष के बाद सुलह और पुनर्निर्माण के लक्ष्य को नज़रअंदाज़ करता है। फिर से संघर्ष और मनमाने शासन में जाने से बचने के लिए सबसे अच्छा तरीका यह सुनिश्चित करना है कि श्रीलंका के नेताओं के प्रतिनिधियों को संस्थाओं के माध्यम से उत्तरदायी बनाया जाए।
लेकिन हम दमनशील शासन के पृष्ठ को पूरी तरह नहीं उलट सकते, लोकतांत्रिक स्वतंत्रता की पूरी श्रेणी को बहाल नहीं कर सकते, और अपने दम पर समावेशी तरीके से अपनी अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण नहीं कर सकते। हमारे देश की बहुत ज़्यादा संपदा युद्ध से नष्ट हो गई है, विदेशों में चली गई है, या भ्रष्टाचार के माध्यम से निकाल ली गई है। हमारे पास बस सहायता के बिना पुनर्निर्माण का महान कार्य शुरू करने के लिए संसाधनों की कमी है।
इसलिए हमारी ज़रूरत है कि दुनिया के लोकतंत्र हमारे साथ खड़े हों और हमारा समर्थन करें, ताकि हमारे लोग हतोत्साहित न हो जाएँ और उन निरंकुश ताकतों के भुलावे में न आ जाएँ जो आने वाले संसदीय चुनाव में सत्ता में वापस आने के लिए मैदान में डटकर इंतजार कर रही हैं। हम अपने लोगों के सामने यह प्रदर्शित करना चाहते हैं कि दीर्घकालीन शांति और साझा समृद्धि के लिए सुलह, लोकतंत्र, सहिष्णुता, और क़ानून का शासन ही अकेला रास्ता है। अफ़सोस की बात है कि अब तक हमें जो मदद मिली है वह मेरी सरकार को हमारे देश के पुनर्निर्माण और दुनिया में हमारी रणनीतिक स्थिति पुनः स्थापित करने में सक्षम हो सकने की दृष्टि से बहुत कम है।
फिर भी, आशा के लिए कारण मौजूद है। हालाँकि हमारी राजनीतिक संस्थाओं में आमूलचूल परिवर्तन की ज़रूरत है, लेकिन मुझे यह कहते हुए गर्व है कि उन्हें भ्रष्ट और खोखला करने के लिए राजपक्षे के भरपूर प्रयासों के बावजूद, हमारी जीत इसलिए संभव हुई कि चुनाव आयोग और अदालत के कर्मियों ने क़ानून का पालन किया। यह बात भी उतनी ही महत्वपूर्ण है कि जब वोटों की गिनती हुई, तो श्रीलंका के सैन्य नेताओं ने अपनी शपथ का पालन किया और राजपक्षे के चुनाव रद्द करने और उसे सत्ता में बनाए रखने के असंवैधानिक आदेश को बहादुरी से अस्वीकार कर किया।
नागरिक वीरता के ये कार्य वह मज़बूत आधार देते हैं जिस पर श्रीलंका के राज्य और समाज का पुनर्निर्माण हो सकेगा। दुनिया की मदद से, हम बिल्कुल ऐसा ही करेंगे।