पीढ़ी-दर-पीढ़ी कुपोषण

इस्लामाबाद, पिछले महीने आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के ग्रीन टेम्पलटन कालेज के इग्रोव पार्क में वार्षिक ‘इमर्जिंग मार्केट सिम्पोजियम’ का आयोजन किया गया. इस साल का विषय ‘मां-शिशु का स्वास्थ्य और पोषण’ रखा गया. प्रस्तुति के अंत में जीटीसी के स्टीफन कैनेडी ने कार्टून चित्र द्वारा दो बच्चों को दर्शाया, जो दौड़ के मैदान में खड़े हैं. जहां एक बच्चा बेहद स्वस्थ और ताकतवर नजर आ रहा है वहीं दूसरा बच्चा बेहद कमजोर और बीमार दिखाई देता है. स्टीफन का संदेश एकदम स्पष्ट है कि हर मनुष्य जीवन की शुरु  आत सफलता से नहीं करता.

हालांकि यह निष्कर्ष पूर्ण नहीं है. गरीबी, अशिक्षा, घरेलू स्थिति जैसी सभी चीजें बच्चे के स्वास्थ्य को प्रभावित कर न सकती हैं. इन सभी कारणों से हटकर और कम चर्चित एक बेहद अहम कारण भी है -- या हो सकता है ‘मातृक पोषण’.

वैसे चर्चा ‘प्रकृति’ और ‘परवरिश’ पर हो रही थी जो मनुष्य के विकास को आकार देती है. पहले के समय में भी माता के स्वास्थ्य और ऊर्जा को देखकर ही आने वाले पीढ़ी के स्वास्थ्य का आकलन कर लिया जाता था. गरीबी और अज्ञानता इसके मूल कारण के रूप में देखा जा सकता है.

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