बर्लिन – आइए हम एक पल के लिए कल्पना करें कि हम दुनिया को अपनी इच्छा के अनुसार बदल सकते हैं। भारी आर्थिक असमानता का स्थान सामाजिक और राजनीतिक समावेशन ले लेता है। वैश्विक मानव अधिकार वास्तविकता बन जाते हैं। हम वनों की कटाई और कृषि योग्य भूमि के विनाश को समाप्त कर देते हैं। मछलियों के भंडारों में वृद्धि होने लगती है। दो अरब लोग गरीबी, भूख, और हिंसा से रहित जीवन की आशा करने लगते हैं। जलवायु परिवर्तन और संसाधन की कमी का ढोंग करने के बजाय, हम अपने भूमंडल और उसके वातावरण की सीमाओं का सम्मान और समर्थन करना शुरू कर देते हैं।
2001 में जब संयुक्त राष्ट्र ने मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स (एमडीजी) को अपनाया था तब यही उद्देश्य था। अगले साल जब एमडीजी की समय-सीमा समाप्त हो जाएगी और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विकास की नीति के लिए अनुवर्ती ढाँचे को अपनाएगा तब यही उद्देश्य होगा। आनेवाले सतत विकास के लक्ष्यों (एसडीजी) का उद्देश्य, पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा करना, संसाधनों का संरक्षण करना, और एमडीजी की ही तरह लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालना होगा।
पर्यावरण और विकास संबंधी ढाँचों को परस्पर मिलाना एक अच्छा विचार है - यह जलवायु की रक्षा, जैव-विविधता के संरक्षण, मानव अधिकारों को बनाए रखने, और गरीबी को कम करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में तैयार किए गए कानूनी तौर पर बाध्यकारी अनेक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और समझौतों की सफलता पर आधारित होता है। हालाँकि वे संभवतः परिपूर्ण नहीं होते हैं - और, दुर्भाग्यवश, जो देश उनकी पुष्टि करते हैं वे हमेशा लक्ष्य हासिल नहीं करते है - उनसे ऐसी संस्थागत प्रक्रियाओं के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ है जिनसे देश अपने वादों को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं और नागरिक सरकारों को जवाबदेह ठहराने के लिए प्रोत्साहित होते हैं।
लेकिन, हालाँकि इस प्रकार एसडीजी को ठोस कानूनी आधार मिलेगा, परंतु उस आधार को आगे विकसित किया जाना चाहिए। शुरूआत करनेवालों के लिए, वैश्विक समझौते और लक्ष्य अभी तक प्रमुख पर्यावरणीय चुनौतियों के लिए निर्धारित नहीं किए गए हैं, इनमें उपजाऊ ऊपरी मिट्टी का विनाश और वैश्विक प्लास्टिक उत्पादन शामिल हैं। इस तरह के समझौतों का होना इसलिए आवश्यक होगा ताकि एसडीजी मानव अधिकारों, पर्यावरण और विकास पर समग्र रूप से विचार कर सके।
शोधकर्ता और नागरिक-समाज संगठन 2020 तक मिट्टी के क्षरण की स्थिति को पलटने के लिए आह्वान कर रहे हैं, और वैश्विक खाद्य सुरक्षा के इस मूलभूत पहलू पर विचार करने के लिए संयुक्त राष्ट्र में विशेषज्ञों के कम-से-कम एक अंतर्राष्ट्रीय पैनल के उपस्थित होने के लिए दबाव डाल रहे हैं। हर साल, 12 मिलियन हेक्टेयर भूमि - जो आकार में ऑस्ट्रिया और स्विट्जरलैंड के क्षेत्र के बराबर है - अति उपयोग और उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग करने के कारण नष्ट हो जाती है। बड़े पैमाने पर खेती किेए जाने के कारण इसका पर्यावरणीय प्रभाव कई गुना अधिक बढ़ जाता है। इसके सामाजिक परिणाम, बेदखली, आजीविकाएँ समाप्त होना, और हिंसक संघर्ष भी बहुत अधिक गंभीर हो सकते हैं।
प्लास्टिक के उपयोग पर भी अंकुश लगाया जाना चाहिए। 1950 के दशक से दुनिया भर में इसका उत्पादन सौ गुना बढ़ गया है। हर साल, 280 लाख टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन होता है, यह भारी मात्रा में भूजल, नदियों, और महासागरों में समा जाता है, और यह क्रम इसी तरह आगे चलता रहता है। हालाँकि प्लास्टिक जैवविघटनीय नहीं है, परंतु किसी भी देश ने इसे हमारे वातावरण में प्रवेश करने से रोकने का वादा नहीं किया है।
Access every new PS commentary, our entire On Point suite of subscriber-exclusive content – including Longer Reads, Insider Interviews, Big Picture/Big Question, and Say More – and the full PS archive.
Subscribe Now
एक अन्य अत्यधिक अपुष्ट संभावना यह होगी कि पर्यावरण की दृष्टि से हानिकारक और सामाजिक दृष्टि से अहितकर सब्सिडियों को चरणबद्ध रूप से समाप्त करने के लिए लक्ष्य निर्धारित किए जाएँ। वैश्विक स्तर पर, यूरोपीय संघ की सामान्य कृषि नीति के ज़रिए दी जानेवाली सब्सिडियों जैसी इन सब्सिडियों की राशि अरबों डॉलरों में होती है, जिनसे बजट खाली हो जाते हैं और अक्सर गरीबों के लिए कुछ नहीं हो पाता है। इनमें कटौती करने से न केवल अलाभकारी प्रोत्साहनों को समाप्त किया जा सकेगा; बल्कि इससे ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा, सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल, और बुनियादी सुविधाओं के लिए धन उपलब्ध हो सकेगा जहाँ पर आय के अवसर पैदा करने के लिए इसकी ज़रूरत है।
दुर्भाग्यवश, हमें हमारी इच्छाओं की दुनिया मिलने की संभावना नहीं है। एसडीजी समझौते यह दर्शाते हैं कि बहुपक्षीय ढाँचे में वर्तमान में क्या संभव है: अपेक्षाकृत कुछ नहीं। कोई भी सरकार असमानता और भूख के कारणों से निपटने के लिए सही मायनों में तैयार नहीं है, जिसके लिए उचित कराधान और व्यापक कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की आवश्यकता होगी। इस तरह के सुधार किसी भी विकास सहायता की तुलना में अधिक प्रभावी होंगे, लेकिन फिलहाल वे निषिद्ध हैं।
वैश्विक अर्थव्यवस्था के नियम भी पहुँच के बाहर बने हुए हैं, जिससे यह लगभग असंभव है कि वित्तीय और व्यापार नीतियों का पुनर्गठन यह सुनिश्चित करने के लिए किया जा सके कि उनके कारण अधिक गरीबी, अनियंत्रित जलवायु परिवर्तन, और अपरिवर्तनीय संसाधन विनाश नहीं होते हैं।
अब तक की सहमति की भाषा यह भरोसा नहीं दिलाती है। हर कीमत पर आर्थिक विकास के लिए घिसी-पिटी प्रतिबद्धता से इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं मिलता कि हमारे भूमंडल की सीमाओं और इस तथ्य को देखते हुए कि अरबों लोग गरीबी में रहते हैं, विकास को कैसे संतुलित किया जा सकता है। सीमित दुनिया में, असीमित विकास असंभव है, और यदि विकास के लाभों का उचित रूप से वितरण नहीं किया जाता है तो उत्पादन के बढ़ने से हर किसी को भोजन उपलब्ध नहीं हो जाएगा।
विकास का साहसिक एजेंडा तैयार करने में केवल उन्नत देश ही रुकावट नहीं डाल रहे हैं। उभरते और विकासशील देशों में से संपन्न देश एसडीजी समझौतों का उपयोग मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय सहायता के हस्तांतरणों के लिए माँग करने के एक मंच के रूप में कर रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र की स्थिति अपने सदस्यों जैसी ही है। वे कितने अच्छे हैं इसका पता हमें इस बात से चल पाएगा कि वे एसडीजी को इक्कीसवीं सदी में पर्यावरण और विकास नीति के लिए सही मायने में नई प्राथमिकताओं और सही मायने में सार्वभौमिक लक्ष्यों को स्थापित करने के लिए किस सीमा तक एक अवसर के रूप देखते हैं।
To have unlimited access to our content including in-depth commentaries, book reviews, exclusive interviews, PS OnPoint and PS The Big Picture, please subscribe
When comparing Ukraine’s situation in 2024 to Europe’s in 1941, Russia’s defeat seems entirely possible. But it will require the West, and the US in particular, to put aside domestic political squabbles and muster the political will to provide Ukraine with consistent and robust military and financial assistance.
compare Russia's full-scale invasion to World War II and see reason to hope – as long as aid keeps flowing.
Current debates about Israeli policy are rife with double standards, leading to absurd decisions like Germany’s recent cancellation of a pro-Palestinian gathering. By quashing legitimate speech and assembly, an Israel-aligned establishment risks inciting precisely the kind of anti-Semitism that it wants to prevent.
worries that the double standards applied on Israel’s behalf will lead to an anti-Semitic backlash.
बर्लिन – आइए हम एक पल के लिए कल्पना करें कि हम दुनिया को अपनी इच्छा के अनुसार बदल सकते हैं। भारी आर्थिक असमानता का स्थान सामाजिक और राजनीतिक समावेशन ले लेता है। वैश्विक मानव अधिकार वास्तविकता बन जाते हैं। हम वनों की कटाई और कृषि योग्य भूमि के विनाश को समाप्त कर देते हैं। मछलियों के भंडारों में वृद्धि होने लगती है। दो अरब लोग गरीबी, भूख, और हिंसा से रहित जीवन की आशा करने लगते हैं। जलवायु परिवर्तन और संसाधन की कमी का ढोंग करने के बजाय, हम अपने भूमंडल और उसके वातावरण की सीमाओं का सम्मान और समर्थन करना शुरू कर देते हैं।
2001 में जब संयुक्त राष्ट्र ने मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स (एमडीजी) को अपनाया था तब यही उद्देश्य था। अगले साल जब एमडीजी की समय-सीमा समाप्त हो जाएगी और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विकास की नीति के लिए अनुवर्ती ढाँचे को अपनाएगा तब यही उद्देश्य होगा। आनेवाले सतत विकास के लक्ष्यों (एसडीजी) का उद्देश्य, पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा करना, संसाधनों का संरक्षण करना, और एमडीजी की ही तरह लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालना होगा।
पर्यावरण और विकास संबंधी ढाँचों को परस्पर मिलाना एक अच्छा विचार है - यह जलवायु की रक्षा, जैव-विविधता के संरक्षण, मानव अधिकारों को बनाए रखने, और गरीबी को कम करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में तैयार किए गए कानूनी तौर पर बाध्यकारी अनेक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और समझौतों की सफलता पर आधारित होता है। हालाँकि वे संभवतः परिपूर्ण नहीं होते हैं - और, दुर्भाग्यवश, जो देश उनकी पुष्टि करते हैं वे हमेशा लक्ष्य हासिल नहीं करते है - उनसे ऐसी संस्थागत प्रक्रियाओं के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ है जिनसे देश अपने वादों को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं और नागरिक सरकारों को जवाबदेह ठहराने के लिए प्रोत्साहित होते हैं।
लेकिन, हालाँकि इस प्रकार एसडीजी को ठोस कानूनी आधार मिलेगा, परंतु उस आधार को आगे विकसित किया जाना चाहिए। शुरूआत करनेवालों के लिए, वैश्विक समझौते और लक्ष्य अभी तक प्रमुख पर्यावरणीय चुनौतियों के लिए निर्धारित नहीं किए गए हैं, इनमें उपजाऊ ऊपरी मिट्टी का विनाश और वैश्विक प्लास्टिक उत्पादन शामिल हैं। इस तरह के समझौतों का होना इसलिए आवश्यक होगा ताकि एसडीजी मानव अधिकारों, पर्यावरण और विकास पर समग्र रूप से विचार कर सके।
शोधकर्ता और नागरिक-समाज संगठन 2020 तक मिट्टी के क्षरण की स्थिति को पलटने के लिए आह्वान कर रहे हैं, और वैश्विक खाद्य सुरक्षा के इस मूलभूत पहलू पर विचार करने के लिए संयुक्त राष्ट्र में विशेषज्ञों के कम-से-कम एक अंतर्राष्ट्रीय पैनल के उपस्थित होने के लिए दबाव डाल रहे हैं। हर साल, 12 मिलियन हेक्टेयर भूमि - जो आकार में ऑस्ट्रिया और स्विट्जरलैंड के क्षेत्र के बराबर है - अति उपयोग और उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग करने के कारण नष्ट हो जाती है। बड़े पैमाने पर खेती किेए जाने के कारण इसका पर्यावरणीय प्रभाव कई गुना अधिक बढ़ जाता है। इसके सामाजिक परिणाम, बेदखली, आजीविकाएँ समाप्त होना, और हिंसक संघर्ष भी बहुत अधिक गंभीर हो सकते हैं।
प्लास्टिक के उपयोग पर भी अंकुश लगाया जाना चाहिए। 1950 के दशक से दुनिया भर में इसका उत्पादन सौ गुना बढ़ गया है। हर साल, 280 लाख टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन होता है, यह भारी मात्रा में भूजल, नदियों, और महासागरों में समा जाता है, और यह क्रम इसी तरह आगे चलता रहता है। हालाँकि प्लास्टिक जैवविघटनीय नहीं है, परंतु किसी भी देश ने इसे हमारे वातावरण में प्रवेश करने से रोकने का वादा नहीं किया है।
Subscribe to PS Digital
Access every new PS commentary, our entire On Point suite of subscriber-exclusive content – including Longer Reads, Insider Interviews, Big Picture/Big Question, and Say More – and the full PS archive.
Subscribe Now
एक अन्य अत्यधिक अपुष्ट संभावना यह होगी कि पर्यावरण की दृष्टि से हानिकारक और सामाजिक दृष्टि से अहितकर सब्सिडियों को चरणबद्ध रूप से समाप्त करने के लिए लक्ष्य निर्धारित किए जाएँ। वैश्विक स्तर पर, यूरोपीय संघ की सामान्य कृषि नीति के ज़रिए दी जानेवाली सब्सिडियों जैसी इन सब्सिडियों की राशि अरबों डॉलरों में होती है, जिनसे बजट खाली हो जाते हैं और अक्सर गरीबों के लिए कुछ नहीं हो पाता है। इनमें कटौती करने से न केवल अलाभकारी प्रोत्साहनों को समाप्त किया जा सकेगा; बल्कि इससे ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा, सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल, और बुनियादी सुविधाओं के लिए धन उपलब्ध हो सकेगा जहाँ पर आय के अवसर पैदा करने के लिए इसकी ज़रूरत है।
दुर्भाग्यवश, हमें हमारी इच्छाओं की दुनिया मिलने की संभावना नहीं है। एसडीजी समझौते यह दर्शाते हैं कि बहुपक्षीय ढाँचे में वर्तमान में क्या संभव है: अपेक्षाकृत कुछ नहीं। कोई भी सरकार असमानता और भूख के कारणों से निपटने के लिए सही मायनों में तैयार नहीं है, जिसके लिए उचित कराधान और व्यापक कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की आवश्यकता होगी। इस तरह के सुधार किसी भी विकास सहायता की तुलना में अधिक प्रभावी होंगे, लेकिन फिलहाल वे निषिद्ध हैं।
वैश्विक अर्थव्यवस्था के नियम भी पहुँच के बाहर बने हुए हैं, जिससे यह लगभग असंभव है कि वित्तीय और व्यापार नीतियों का पुनर्गठन यह सुनिश्चित करने के लिए किया जा सके कि उनके कारण अधिक गरीबी, अनियंत्रित जलवायु परिवर्तन, और अपरिवर्तनीय संसाधन विनाश नहीं होते हैं।
अब तक की सहमति की भाषा यह भरोसा नहीं दिलाती है। हर कीमत पर आर्थिक विकास के लिए घिसी-पिटी प्रतिबद्धता से इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं मिलता कि हमारे भूमंडल की सीमाओं और इस तथ्य को देखते हुए कि अरबों लोग गरीबी में रहते हैं, विकास को कैसे संतुलित किया जा सकता है। सीमित दुनिया में, असीमित विकास असंभव है, और यदि विकास के लाभों का उचित रूप से वितरण नहीं किया जाता है तो उत्पादन के बढ़ने से हर किसी को भोजन उपलब्ध नहीं हो जाएगा।
विकास का साहसिक एजेंडा तैयार करने में केवल उन्नत देश ही रुकावट नहीं डाल रहे हैं। उभरते और विकासशील देशों में से संपन्न देश एसडीजी समझौतों का उपयोग मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय सहायता के हस्तांतरणों के लिए माँग करने के एक मंच के रूप में कर रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र की स्थिति अपने सदस्यों जैसी ही है। वे कितने अच्छे हैं इसका पता हमें इस बात से चल पाएगा कि वे एसडीजी को इक्कीसवीं सदी में पर्यावरण और विकास नीति के लिए सही मायने में नई प्राथमिकताओं और सही मायने में सार्वभौमिक लक्ष्यों को स्थापित करने के लिए किस सीमा तक एक अवसर के रूप देखते हैं।