बर्लिन – कोयला, तेल, और गैस जलाने से होनेवाले उत्सर्जन हमारे भूमंडल को इतनी तीव्र दर से गर्म कर रहे हैं कि जलवायु स्थितियों का अधिकाधिक अस्थिर और खतरनाक होना लगभग अपरिहार्य लगता है। जाहिर है कि हमें उत्सर्जनों को तेजी से कम करना होगा, और साथ ही ऐसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का विकास करना होगा जिनसे हम जीवाश्म ईंधनों को जमीन में छोड़ सकें।
यह अनिवार्यता नितांत रूप से स्पष्ट है। फिर भी पिछले कुछ दशकों से जलवायु परिवर्तन इतनी अधिक राजनीतिक निष्क्रियता, गलत जानकारी, और कोरी कल्पना पर आधारित रहा है कि हम इसके मूल कारणों का पता लगाने का प्रयास करने के बजाय, निष्फल या असंभव समाधानों को देखने के आदी हो गए हैं। अक्सर ये "समाधान" अस्तित्वहीन या जोखिमपूर्ण नई प्रौद्योगिकियों पर आधारित होते हैं।
यह दृष्टिकोण बहुत फायदे वाला है क्योंकि इससे न तो सामान्य रूप से व्यवसाय और न ही सामाजिक-आर्थिक विचारधाराओं के लिए कोई खतरा होता है। लेकिन जो जलवायु मॉडल भ्रामक प्रौद्योगिकियों पर निर्भर करते हैं वे उन भारी संरचनात्मक परिवर्तनों को लागू करने की उस अनिवार्यता को कमज़ोर करते हैं जो जलवायु को तबाही से बचाने के लिए आवश्यक हैं।
"शुद्ध-शून्य उत्सर्जन" एक ऐसा नवीनतम "समाधान" उभरकर सामने आया है जो तथाकथित "कार्बन अभिग्रहण और भंडारण" पर निर्भर करता है। हालाँकि प्रौद्योगिकी को अभी भी थोड़ी-बहुत कमियों का सामना करना पड़ रहा है, जलवायु परिवर्तन के अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) के अध्यक्ष राजेन्द्र पचौरी ने पिछले महीने एक अत्यंत समस्यात्मक वक्तव्य जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा कि “कार्बन अभिग्रहण और भंडारण (CCS) के साथ यह पूरी तरह संभव है कि जीवाश्म ईंधनों का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाना जारी रहे।”
सच तो यह है कि आईपीसीसी की नवीनतम मूल्यांकन रिपोर्ट में दुनिया के छोटे – लेकिन फिर भी जोखिमपूर्ण – कार्बन बजट से अधिक सीमा तक जाने से बचने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जनों में भारी कटौती की अनिवार्यता को उजागर किया गया है। लेकिन "शून्य उत्सर्जन," "पूर्ण अकार्बनिकरण," और "100% अक्षय ऊर्जा" जैसे स्पष्ट लक्ष्यों को छोड़कर “शुद्ध-शून्य उत्सर्जन” जैसे कहीं अधिक अस्पष्ट लक्ष्य की ओर जाना एक खतरनाक लक्ष्य अपनाने जैसा है।
दरअसल, शुद्ध-शून्य के विचार का अर्थ यह है कि दुनिया उत्सर्जनों को तब तक पैदा करना जारी रख सकती है जब तक उनका "प्रति-संतुलन" करने का कोई तरीका हो। इस प्रकार, उत्सर्जन में कमी करने के किसी क्रांतिकारी उपाय को तुरंत शुरू करने के बजाय, हम कार्बन डाइऑक्साइड के भारी मात्रा में उत्सर्जन करना जारी रख सकते हैं - और नए कोयला संयंत्रों की स्थापना भी कर सकते हैं - और साथ ही यह दावा कर सकते हैं कि हम कार्बन अभिग्रहण और भंडारण (CCS) प्रौद्योगिकी के विकास का "समर्थन" करके जलवायु संबंधी कार्रवाई कर रहे हैं। यह कहना साफ तौर पर बेतुकी बात है कि संभवतः इस तरह की प्रौद्योगिकी काम न करे, यह व्यावहारिक चुनौतियों से भरी है, और इसमें भावी रिसाव का खतरा मौजूद है, जिसके सामाजिक और पर्यावरण संबंधी गंभीर परिणाम होंगे।
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कार्बन अभिग्रहण और भंडारण के साथ जैव-ऊर्जा (BECCS) शुद्ध-शून्य उत्सर्जनों के नए "लक्ष्योपरि दृष्टिकोण" के लिए प्रचार का साधन है। कार्बन अभिग्रहण और भंडारण के साथ जैव-ऊर्जा (BECCS) में भारी मात्रा में घास और पेड़ों का रोपण, बिजली उत्पन्न करने के लिए बायोमास जलाना, उत्सर्जित होनेवाली कार्बन डाइऑक्साइड का अभिग्रहण करना, और उसे भूमिगत भूगर्भीय जलाशयों में छोड़ना सम्मिलित है।
कार्बन अभिग्रहण और भंडारण के साथ जैव-ऊर्जा (BECCS) के विकास संबंधी भारी निहितार्थ होंगे, इसके कारण बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण करना आवश्यक होगा, जो संभवतः अपेक्षाकृत गरीब लोगों से ली जाएगी। यह कोई दूर की कौड़ी लाने जैसा मामला नहीं है; जैव-ईंधनों के लिए बढ़ती मांग के कारण विकासशील देशों में कई वर्षों तक खौफ़नाक भूमि अधिग्रहणों को बढ़ावा मिला है।
कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जनों के एक बड़े अंश को प्रति-संतुलित करने के लिए बहुत अधिक मात्रा में भूमि की आवश्यकता होगी। वास्तव में, कार्बन अभिग्रहण और भंडारण के साथ जैव-ऊर्जा (BECCS) का उपयोग करके एक बिलियन टन कार्बन को पृथक करने के लिए अनुमानतः 218-990 मिलियन हेक्टेयर भूमि को चारा-घास के लिए परिवर्तित करना होगा। अर्थात संयुक्त राज्य अमेरिका इथेनॉल के लिए मक्का उगाने के लिए जितनी भूमि इस्तेमाल करता है उससे 14-65 गुना भूमि की ज़रूरत होगी।
चारा-घास उगाने के लिए भारी मात्रा में प्रयुक्त होनेवाले उर्वरकों से नाइट्रोजन-ऑक्साइड के उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन को बदतर बनाने के लिए पर्याप्त होंगे। फिर कृत्रिम उर्वरकों का उत्पादन करने; लाखों-करोड़ों हेक्टेयर भूमि से पेड़ों, झाड़ियों, और घास को निकालने; मिट्टी में मौजूद कार्बन के बड़े संग्रहों को नष्ट करने; और चारा-घास के परिवहन और प्रसंस्करण से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन भी हैं।
यह रहस्योद्घाटन इससे भी अधिक समस्या वाला है कि इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि कार्बन अभिग्रहण और भंडारण (CCS) और कार्बन अभिग्रहण और भंडारण के साथ जैव-ऊर्जा (BECCS) का उपयोग "अधिक तेल निष्कर्षण" के लिए किया जाएगा, और भंडारण के लिए कार्बन डाइऑक्साइड को पुराने तेल कूपों में डाला जाएगा जिससे अधिक तेल निष्कर्षण के लिए वित्तीय प्रोत्साहन उपलब्ध होगा। अमेरिका के ऊर्जा विभाग का अनुमान है कि इस तरह के तरीकों से किफायती रूप से 67 अरब बैरल तेल प्राप्त किया जा सकता है - यह मात्रा अमेरिका के प्रमाणित तेल भंडारों का तीन गुना है। दरअसल, दाँव पर लगे धन को देखते हुए, अधिक तेल निष्कर्षण वास्तव में कार्बन अभिग्रहण और भंडारण (CCS) को आगे बढ़ाने के पीछे छिपे इरादों में से एक हो सकता है।
किसी भी स्थिति में, कार्बन अभिग्रहण और भंडारण (CCS) का कोई भी रूप पूर्ण अकार्बनिकरण की ओर संरचनात्मक बदलाव के लक्ष्य को आगे नहीं बढ़ाता है, जिसके लिए सामाजिक आंदोलनों, शिक्षाविदों, आम नागरिकों, और यहाँ तक कि कुछ नेताओं द्वारा अधिकाधिक माँग की जा रही है। वे संक्रमण के दौरान होनेवाली असुविधाओं और त्यागों को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं; वास्तव में, वे शून्य-कार्बन अर्थव्यवस्था तैयार करने की चुनौती को नवीनीकरण और अपने समाजों और समुदायों में सुधार लाने के एक अवसर के रूप में देखते हैं। इस तरह के किसी प्रयास में खतरनाक, गुमराह करनेवाली, और दिवा-स्वप्नों वाली प्रौद्योगिकियों का कोई स्थान नहीं है।
जलवायु संकट की स्पष्ट समझ से संभावित समाधानों की सीमा बहुत बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए, नए कोयला संयंत्रों पर रोक लगाकर और फीड-इन टैरिफ के ज़रिए जीवाश्म-ईंधन की आर्थिक सहायताओं को अक्षय ऊर्जा के वित्तपोषण में स्थानांतरित करके, जीवाश्म-ईंधन पर निर्भरता को कम करते हुए टिकाऊ ऊर्जा दुनिया भर में करोड़ों लोगों को उपलब्ध की जा सकती है।
जहाँ ऐसे नवोन्मेषी और व्यावहारिक समाधानों को बढ़ावा देने से रोका जा रहा है, वहीं अरबों डॉलर की राशि आर्थिक सहायता के रूप में दी जा रही है जिससे यथास्थिति मज़बूत होती है। प्रणाली में सुधार लाने और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने की दिशा में वास्तविक प्रगति करने का एकमात्र रास्ता जीवाश्म ईंधन को पूरी तरह से खत्म करने के लिए काम करना है। अनिश्चित प्रौद्योगिकियों पर आधारित अस्पष्ट लक्ष्यों से कतई काम नहीं चलेगा।
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Iran’s mass ballistic missile and drone attack on Israel last week raised anew the specter of a widening Middle East war that draws in Iran and its proxies, as well as Western countries like the United States. The urgent need to defuse tensions – starting by ending Israel’s war in Gaza and pursuing a lasting political solution to the Israeli-Palestinian conflict – is obvious, but can it be done?
The most successful development stories almost always involve major shifts in the sources of economic growth, which in turn allow economies to reinvent themselves out of necessity or by design. In China, the interplay of mounting external pressures, lagging household consumption, and falling productivity will increasingly shape China’s policy choices in the years ahead.
explains why the Chinese authorities should switch to a consumption- and productivity-led growth model.
Designing a progressive anti-violence strategy that delivers the safety for which a huge share of Latin Americans crave is perhaps the most difficult challenge facing many of the region’s governments. But it is also the most important.
urge the region’s progressives to start treating security as an essential component of social protection.
बर्लिन – कोयला, तेल, और गैस जलाने से होनेवाले उत्सर्जन हमारे भूमंडल को इतनी तीव्र दर से गर्म कर रहे हैं कि जलवायु स्थितियों का अधिकाधिक अस्थिर और खतरनाक होना लगभग अपरिहार्य लगता है। जाहिर है कि हमें उत्सर्जनों को तेजी से कम करना होगा, और साथ ही ऐसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का विकास करना होगा जिनसे हम जीवाश्म ईंधनों को जमीन में छोड़ सकें।
यह अनिवार्यता नितांत रूप से स्पष्ट है। फिर भी पिछले कुछ दशकों से जलवायु परिवर्तन इतनी अधिक राजनीतिक निष्क्रियता, गलत जानकारी, और कोरी कल्पना पर आधारित रहा है कि हम इसके मूल कारणों का पता लगाने का प्रयास करने के बजाय, निष्फल या असंभव समाधानों को देखने के आदी हो गए हैं। अक्सर ये "समाधान" अस्तित्वहीन या जोखिमपूर्ण नई प्रौद्योगिकियों पर आधारित होते हैं।
यह दृष्टिकोण बहुत फायदे वाला है क्योंकि इससे न तो सामान्य रूप से व्यवसाय और न ही सामाजिक-आर्थिक विचारधाराओं के लिए कोई खतरा होता है। लेकिन जो जलवायु मॉडल भ्रामक प्रौद्योगिकियों पर निर्भर करते हैं वे उन भारी संरचनात्मक परिवर्तनों को लागू करने की उस अनिवार्यता को कमज़ोर करते हैं जो जलवायु को तबाही से बचाने के लिए आवश्यक हैं।
"शुद्ध-शून्य उत्सर्जन" एक ऐसा नवीनतम "समाधान" उभरकर सामने आया है जो तथाकथित "कार्बन अभिग्रहण और भंडारण" पर निर्भर करता है। हालाँकि प्रौद्योगिकी को अभी भी थोड़ी-बहुत कमियों का सामना करना पड़ रहा है, जलवायु परिवर्तन के अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) के अध्यक्ष राजेन्द्र पचौरी ने पिछले महीने एक अत्यंत समस्यात्मक वक्तव्य जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा कि “कार्बन अभिग्रहण और भंडारण (CCS) के साथ यह पूरी तरह संभव है कि जीवाश्म ईंधनों का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाना जारी रहे।”
सच तो यह है कि आईपीसीसी की नवीनतम मूल्यांकन रिपोर्ट में दुनिया के छोटे – लेकिन फिर भी जोखिमपूर्ण – कार्बन बजट से अधिक सीमा तक जाने से बचने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जनों में भारी कटौती की अनिवार्यता को उजागर किया गया है। लेकिन "शून्य उत्सर्जन," "पूर्ण अकार्बनिकरण," और "100% अक्षय ऊर्जा" जैसे स्पष्ट लक्ष्यों को छोड़कर “शुद्ध-शून्य उत्सर्जन” जैसे कहीं अधिक अस्पष्ट लक्ष्य की ओर जाना एक खतरनाक लक्ष्य अपनाने जैसा है।
दरअसल, शुद्ध-शून्य के विचार का अर्थ यह है कि दुनिया उत्सर्जनों को तब तक पैदा करना जारी रख सकती है जब तक उनका "प्रति-संतुलन" करने का कोई तरीका हो। इस प्रकार, उत्सर्जन में कमी करने के किसी क्रांतिकारी उपाय को तुरंत शुरू करने के बजाय, हम कार्बन डाइऑक्साइड के भारी मात्रा में उत्सर्जन करना जारी रख सकते हैं - और नए कोयला संयंत्रों की स्थापना भी कर सकते हैं - और साथ ही यह दावा कर सकते हैं कि हम कार्बन अभिग्रहण और भंडारण (CCS) प्रौद्योगिकी के विकास का "समर्थन" करके जलवायु संबंधी कार्रवाई कर रहे हैं। यह कहना साफ तौर पर बेतुकी बात है कि संभवतः इस तरह की प्रौद्योगिकी काम न करे, यह व्यावहारिक चुनौतियों से भरी है, और इसमें भावी रिसाव का खतरा मौजूद है, जिसके सामाजिक और पर्यावरण संबंधी गंभीर परिणाम होंगे।
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कार्बन अभिग्रहण और भंडारण के साथ जैव-ऊर्जा (BECCS) शुद्ध-शून्य उत्सर्जनों के नए "लक्ष्योपरि दृष्टिकोण" के लिए प्रचार का साधन है। कार्बन अभिग्रहण और भंडारण के साथ जैव-ऊर्जा (BECCS) में भारी मात्रा में घास और पेड़ों का रोपण, बिजली उत्पन्न करने के लिए बायोमास जलाना, उत्सर्जित होनेवाली कार्बन डाइऑक्साइड का अभिग्रहण करना, और उसे भूमिगत भूगर्भीय जलाशयों में छोड़ना सम्मिलित है।
कार्बन अभिग्रहण और भंडारण के साथ जैव-ऊर्जा (BECCS) के विकास संबंधी भारी निहितार्थ होंगे, इसके कारण बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण करना आवश्यक होगा, जो संभवतः अपेक्षाकृत गरीब लोगों से ली जाएगी। यह कोई दूर की कौड़ी लाने जैसा मामला नहीं है; जैव-ईंधनों के लिए बढ़ती मांग के कारण विकासशील देशों में कई वर्षों तक खौफ़नाक भूमि अधिग्रहणों को बढ़ावा मिला है।
कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जनों के एक बड़े अंश को प्रति-संतुलित करने के लिए बहुत अधिक मात्रा में भूमि की आवश्यकता होगी। वास्तव में, कार्बन अभिग्रहण और भंडारण के साथ जैव-ऊर्जा (BECCS) का उपयोग करके एक बिलियन टन कार्बन को पृथक करने के लिए अनुमानतः 218-990 मिलियन हेक्टेयर भूमि को चारा-घास के लिए परिवर्तित करना होगा। अर्थात संयुक्त राज्य अमेरिका इथेनॉल के लिए मक्का उगाने के लिए जितनी भूमि इस्तेमाल करता है उससे 14-65 गुना भूमि की ज़रूरत होगी।
चारा-घास उगाने के लिए भारी मात्रा में प्रयुक्त होनेवाले उर्वरकों से नाइट्रोजन-ऑक्साइड के उत्सर्जन जलवायु परिवर्तन को बदतर बनाने के लिए पर्याप्त होंगे। फिर कृत्रिम उर्वरकों का उत्पादन करने; लाखों-करोड़ों हेक्टेयर भूमि से पेड़ों, झाड़ियों, और घास को निकालने; मिट्टी में मौजूद कार्बन के बड़े संग्रहों को नष्ट करने; और चारा-घास के परिवहन और प्रसंस्करण से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन भी हैं।
यह रहस्योद्घाटन इससे भी अधिक समस्या वाला है कि इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि कार्बन अभिग्रहण और भंडारण (CCS) और कार्बन अभिग्रहण और भंडारण के साथ जैव-ऊर्जा (BECCS) का उपयोग "अधिक तेल निष्कर्षण" के लिए किया जाएगा, और भंडारण के लिए कार्बन डाइऑक्साइड को पुराने तेल कूपों में डाला जाएगा जिससे अधिक तेल निष्कर्षण के लिए वित्तीय प्रोत्साहन उपलब्ध होगा। अमेरिका के ऊर्जा विभाग का अनुमान है कि इस तरह के तरीकों से किफायती रूप से 67 अरब बैरल तेल प्राप्त किया जा सकता है - यह मात्रा अमेरिका के प्रमाणित तेल भंडारों का तीन गुना है। दरअसल, दाँव पर लगे धन को देखते हुए, अधिक तेल निष्कर्षण वास्तव में कार्बन अभिग्रहण और भंडारण (CCS) को आगे बढ़ाने के पीछे छिपे इरादों में से एक हो सकता है।
किसी भी स्थिति में, कार्बन अभिग्रहण और भंडारण (CCS) का कोई भी रूप पूर्ण अकार्बनिकरण की ओर संरचनात्मक बदलाव के लक्ष्य को आगे नहीं बढ़ाता है, जिसके लिए सामाजिक आंदोलनों, शिक्षाविदों, आम नागरिकों, और यहाँ तक कि कुछ नेताओं द्वारा अधिकाधिक माँग की जा रही है। वे संक्रमण के दौरान होनेवाली असुविधाओं और त्यागों को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं; वास्तव में, वे शून्य-कार्बन अर्थव्यवस्था तैयार करने की चुनौती को नवीनीकरण और अपने समाजों और समुदायों में सुधार लाने के एक अवसर के रूप में देखते हैं। इस तरह के किसी प्रयास में खतरनाक, गुमराह करनेवाली, और दिवा-स्वप्नों वाली प्रौद्योगिकियों का कोई स्थान नहीं है।
जलवायु संकट की स्पष्ट समझ से संभावित समाधानों की सीमा बहुत बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए, नए कोयला संयंत्रों पर रोक लगाकर और फीड-इन टैरिफ के ज़रिए जीवाश्म-ईंधन की आर्थिक सहायताओं को अक्षय ऊर्जा के वित्तपोषण में स्थानांतरित करके, जीवाश्म-ईंधन पर निर्भरता को कम करते हुए टिकाऊ ऊर्जा दुनिया भर में करोड़ों लोगों को उपलब्ध की जा सकती है।
जहाँ ऐसे नवोन्मेषी और व्यावहारिक समाधानों को बढ़ावा देने से रोका जा रहा है, वहीं अरबों डॉलर की राशि आर्थिक सहायता के रूप में दी जा रही है जिससे यथास्थिति मज़बूत होती है। प्रणाली में सुधार लाने और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने की दिशा में वास्तविक प्रगति करने का एकमात्र रास्ता जीवाश्म ईंधन को पूरी तरह से खत्म करने के लिए काम करना है। अनिश्चित प्रौद्योगिकियों पर आधारित अस्पष्ट लक्ष्यों से कतई काम नहीं चलेगा।