भारत का राजकोषीय सौभाग्य

कैम्ब्रिज – भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार सौभाग्यशाली महसूस कर रही होगी। कच्चे तेल के कारण विश्व में वस्तुओं की कीमतों में गिरावट आने के फलस्वरूप, राष्ट्रीय बजट का प्रबंध करना अधिक आसान हो गया है। और अब, केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा जीडीपी डेटा की गणना के लिए अपनी कार्यप्रणाली को संशोधित करने के बाद यह कार्य और भी आसान हो गया है। सीएसओ के अनुसार, पद्धति में किए गए इस परिवर्तन के परिणामस्वरूप 2014 की दूसरी तिमाही में वार्षिक उत्पादन में वृद्धि 5.3% के मूल अनुमान से बहुत अधिक बढ़कर 8.2% पर पहुँच गई।

जीडीपी के संशोधित आंकड़ों के आधार पर, मार्च 2015 को समाप्त होनेवाले राजकोषीय वर्ष में भारत की औसत विकास दर 7.4% होने की आशा है। इसके अलावा, अगले राजकोषीय वर्ष में देश में 8-8.5% की दर से विकास होने का अनुमान है। बजट में किसी प्रकार के भी परिवर्तनों से विकास में ऐसी उल्लेखनीय, लागत-रहित तेज़ी नहीं लाई जा सकती थी। यह कहना उचित होगा कि आमतौर पर गंभीर रहनेवाले सांख्यिकी विभाग ने इस साल के बजट में वाहवाही लूट ली।

फिर भी, वित्त मंत्री अरुण जेटली के बजट को कई मोर्चों पर सफलता मिली है – कम-से-कम इसकी कल्पना और कार्यान्वयन के सामंजस्य में तो मिली ही है। विशेष रूप से, यह बजट सरकार के विकास समर्थक एजेंडा की कल्पना को आगे बढ़ानेवाला है जिसमें कल्याणकारी योजनाओं के लिए बेहतर सुपुर्दगी तंत्र को लक्षित करते हुए यह भारत में कारोबार करने में आसानी को और बढ़ाता है।

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