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भारत की आंतरिक बाधाओं को दूर करना

नई दिल्ली – भारत में जिन बहुत से आर्थिक सुधारों को तत्काल लागू करने की आवश्यकता है उनमें से सबसे अधिक स्पष्ट सुधार बहुत लंबे समय से अनिर्णीत वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) है। तो भारत के राजनीतिज्ञ इसे अधिनियमित करने में असफल क्यों रहे हैं?

जीएसटी की जरूरत लगभग निर्विवाद है। जैसा कि अरबपति स्टीव फोर्ब्स ने अपने नाम की अपनी पत्रिका में हाल ही में लिखा था "बाहरी लोगों को इस बात पर आश्चर्य है कि भारत काफी हद तक क्रांति से पूर्व के फ्रांस जैसा है जिसमें कई आंतरिक बाधाएँ उसकी आर्थिक क्षमता और विकास के रास्ते में खड़ी हैं।" फिर उन्होंने यह उल्लेख किया कि संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह, भारत को सक्षम बनाने के लिए इसके महाद्वीप के आकार के घरेलू बाजार का लाभ लेने के लिए जीएसटी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह "स्थानीय करों के दमघोंटू गोलमाल" का स्थान ले लेगा जो "माल की आवाजाही पर आंतरिक शुल्कों" के रूप में हैं।

वास्तव में, भारत में हक्का-बक्का कर देनेवाले उप-राष्ट्रीय करों की भारी-भरकम व्यवस्था है। उदाहरण के लिए, भारत के राज्यों के बीच वाणिज्य पर करों के लिए उनकी सीमाओं पर चुंगियों की आवश्यकता पड़ती है जहाँ ट्रकों की लंबी कतारें मंजूरी का इंतजार करती रहती हैं। परिणामस्वरूप, देश भर में माल भाड़े का परिवहन करना एक भयावह अनुभव है। बिक्री करों में भिन्नता है, और स्थानीय खपत के लिए प्रेषित किए जानेवाले माल के सीमा पार के लदानों पर "चुंगी" कर और जुड़ जाते हैं। यूरोपीय संघ में 28 संप्रभु देश हैं जिनका एक साझा बाज़ार है, जबकि, भारतीय संघ एक संप्रभु देश है जिसमें 29 अलग-अलग बाज़ार हैं।

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