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भारत के लिए आर्थिक पथप्रदर्शक

नई दिल्ली – भारत के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वचन दिया है कि वह देश की सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था में नयी जान फूंकेंगे. जब उनसे उनकी सुधार योजनाओं के बारे में पूछा गया तो मोदी ने जवाब दिया कि उनका एक ही आर्थिक दृष्टिकोण है कि ‘हमारी जीडीपी को बढ़ाना चाहिए’. बेशक यह एक स्पष्ट लक्ष्य है लेकिन हाल के वर्षों में देखें तो लगता है कि यह लक्ष्य देश की दृष्टि से ओझल हो गया है.

भारतीय अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने के लिए क्या करना होगा ताकि यह लगातार वृद्घि कर सके? हमारा मानना है कि आगे वर्णित पांच साधारण तथ्यों में भारतीय अर्थव्यवस्था की कुंजी छिपी है.

पहला, भारत एक ‘युवा’ और उभरता हुआ बाजार है. इसका अर्थ है कि अगले पांच साल में भारत के संस्थानों में मौलिक परिवर्तन लाए बगैर देश की आर्थिक वृद्घि में ऊंची दर नहीं प्राप्त की जा सकती है. किसी देश का उत्पादन उसके श्रम बल और पूंजी के रूप में निवेशित लागत पर और उनके उपयोग की कुशलता पर निर्भर करता है. जब पूंजीगत लागत, जिसमें आधारभूत ढांचा भी शामिल है, में कमी होती है तो इसमें निवेश करना वृद्घि हासिल करने का सबसे तेज तरीका हो सकता है (बशर्ते कि कोष उपलब्ध हो). साधारण शब्दों में कहें तो यह ‘नीचे लटकता फल’ है जिसे मोदी को तुरंत लपक लेना चाहिए. संसाधनों के दक्षतापूर्ण उपयोग और श्रम बल के कौशल के स्तर को ऊंचा उठाना कहीं अधिक कठिन और धीमी गति से चलने वाला कार्य है.

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