दवा का सामाजिक विज्ञान

डावोस – 1980 के दशक के मध्य में जब मैं एक मेडिकल छात्र था, मुझे पापुआ न्यू गिनी में मलेरिया हुआ था। यह एक कष्टकारी अनुभव था। मेरे सिर में दर्द होता था। मेरा तापमान बढ़ गया था। मुझमें खून की कमी हो गई थी। लेकिन मैंने दवा लेना जारी रखा, और मैं ठीक हो गया। यह अनुभव सुखद नहीं था, लेकिन सस्ती, प्रभावशाली मलेरिया की दवाओं की बदौलत मैं बहुत ज्यादा खतरे में कभी नहीं था।

क्लोरोक्विन की जिन गोलियों से मैं ठीक हुआ था वे गोलियां अब बिल्कुल काम नहीं करती हैं। यहां तक कि जब मैं उन्हें ले रहा था तब भी, जिस परजीवी के कारण मलेरिया होता है वह पहले ही दुनिया के कई हिस्सों में क्लोरोक्विन का प्रतिरोधी बन चुका था; पापुआ न्यू गिनी उन कुछ स्थानों में से एक था जहां गोलियाँ प्रभावशाली बनी हुई थीं, और इसके बावजूद वहां भी उनकी शक्ति कम होती जा रही थी। आज, क्लोरोक्विन मूल रूप से हमारे चिकित्सा शस्त्रागार से गायब हो गई है।

एंटीबायोटिक दवाओं और अन्य रोगाणुरोधी दवाओं का प्रतिरोध करनेवाले रोगाणुओं की बढ़ती क्षमता आजकल के स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में सबसे बड़े उभरते संकट में तब्दील हो रही है - और यह एक ऐसा संकट है जिसे अकेले विज्ञान द्वारा हल नहीं किया जा सकता है।

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