भारत का चीनी स्वप्न

सीयोल. हाल के वर्षों में चीन और भारत दोनों वैश्विक आर्थिक महाशक्तियों के रूप में उभरे हैं, जिसमें चीन का पलड़ा भारी है. लेकिन, जहां चीन की वृद्धि कुछ मंद पड़ी है और ढांचागत बदलावों की जरूरत शिद्दत से महसूस की जा रही है, सवाल है कि क्या नए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जारी आर्थिक-सुधार के प्रयासों की बदौलत भारत चीन के बराबर आ जाएगा या उसे पछाड़ देगा?

1980 के दशक से चीन ने अप्रत्याशित आर्थिक प्रगति दर्ज की है. सस्ती श्रम शक्ति, उच्च बचत व निवेश दर, निर्वहनीय बाजार सुधारों, विदेशोन्मुख नीतियों तथा समझदारीपूर्ण सूक्ष्म आर्थिक प्रबंधन से इस प्रगति को बल मिला. अब इसके नेताओं को उम्मीद है कि वे उन्नत तकनीकी उद्योगों का विकास कर उच्च-आय का दर्जा प्राप्त कर लेंगे.

भारत का आर्थिक निष्पादन कुछ कम उल्लेखनीय रहा है. 1990 दशक की शुरूआत में इसकी आर्थिक वृद्धि गति पकड़ने लगी थी. कारण था व्यापार का उदारीकरण और अन्य आर्थिक सुधार. उसके बाद ये सुधार थम से गए, वित्तीय तथा चालू खाता घाटा बढ़ने लगा और आखिरकार सालाना सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) 4-5% तक गिर गया.

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